कविनियम वर्णन
दोहा
वर्णत चंदन मलयही, हिमिगिरिही भुज पात।
वर्णत देवनि चरणत, शिरते मानुष गात॥११॥
कवि लोग चन्दन का वर्णन मलयपर्वत पर ही करते है और भोजपत्र को हिमालय पर ही बतलाते है। वे देवताओ के शरीर का वर्णन करते समय चरणों से तथा मनुष्यों के रूप का वर्णन करते समय शिर से आरम्भ करते है।
दोहा
अति लज्जायुत कुलवधू, गणिकागण निर्लज्ज।
कुलटाफो कोविद कहहि अग अलज्ज सलज्ज॥१२॥
वे ( कवि लोग ) कुल बधू को लज्जा युक्त, गणिकाओ को निर्लज्ज तथा कुलटा को ( प्रसगानुसार ) निर्लज्ज और सलज्ज दोनो प्रकार से वर्णन करते है।
वर्णत नारी नरनते, लाज चौगुनी चित्त।
भूख दुगुन साहस छगुन, काम अठगुनो मित्त॥१३॥
वे ( कवि ) स्त्री में पुरुष से चौगुनी लज्जा, दूनी भूख, साहस छः गुना और काम अठगुना वर्णन किया करते है।
दोहा
कोकिल को कल बोलिवो, बरणत है मधुमास।
बरपाही हरषित कहहि, केकी केशवदास॥१४॥
केशवदास कहते है कि वे ( कवि ) लोग व सन्त में कोयल के बोलने का वर्णन करते है और वर्षा में ही मोर का हर्षित होना बतलाते है।
दनुजनिसोंदितिसुतनिसों, असुरै कहत बखानि।
ईशशीश शशिवृद्ध को बरणत बालकबानि॥१५॥