( कोई दूवी अपनी नायिका से कहती है कि ) स्वेत रेशमी पतली चद्दर को उतार कर अधकार की घनी चादर को ही ओढ कर चलिए । क्योकि यह अधकार की चादर न तो काँटो मे उलझेगी और न पैर के नीचे दबने पर फटेगी हा। यह न मूसलाधार पानी मे भीगेगी और न कीचड मे तनिक भी सनेगी, इसे अच्छी तरह सोच लीजिए। । केशव दास, दूी की ओर से कहते है कि । इस चादर मे बडी सुविधा है । इसमे प्रकाश नहीं है क्योकि सफेद चादर की तरह दूर से चमकती नहीं और इसे चाहे जितना फैलाइए तथा इसमे प्रियतम के पास भूल आने का भय भी नहीं है। चाँदनी के सम्बन्ध मे झूठ वर्णन । कवित्त भूपण सकल घनसार ही के घनश्याम, कुसुम फलित केस रही छवि छाई सी। मोतिन की लरी सिर कठ कंठमाल हार, बाकी रूप ज्योति जात हेरत हिराई सी। चन्दन चढाये चारु सुन्दर शरीर सब, राखी शुभ सोमा सब बसन बसाई सी। शारदा सी देखियत देखो जाइ केशोराय, ठाढी वड कॅरि जुन्हाई मे अन्हाई सी ॥१०॥ हे घनश्याम | वह कपूर ही के सब गहने पहने है और बालो को सफेद फूलो से सजाए हए है जिससे, शोभा फैली हुई है। शिर पर मोतियो की लडी तथा गले मे कठमाला है, जो उसके रूप मे खोसे गए है और वह उन्हे खोजती सी जान पडतो है । वह पूरे शरीर पर चन्दन लगाए हुए है जिसने उसकी सुन्दर शोभा भी रखी है और वस्त्र भी महका दिये हैं। ( केशवदास किसी दूती की ओर से कहते है कि वह चांदनी मे नहाई हुई सी नायिका शारदा सी दिखलाई पडतो है, उसे जाकर देखिए।