सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३८ )

( कोई दूती अपनी नायिका से कहती है कि ) स्वेत रेशमी पतली चद्दर को उतार कर अंधकार की घनी चादर को ही ओढ़ कर चलिए। क्योकि यह अंधकार की चादर न तो काँटो में उलझेगी और न पैर के नीचे दबने पर फटेगी ही। यह न मूसलाधार पानी में भीगेगी और न कीचड़ में तनिक भी सनेगी, इसे अच्छी तरह सोच लीजिए। केशवदास, दूती की ओर से कहते है कि इस चादर मे बड़ी सुविधा है इसमे प्रकाश नहीं है क्योंकि सफेद चादर की तरह दूर से चमकती नहीं और इसे चाहे जितना फैलाइए तथा इसमे प्रियतम के पास भूल आने का भय भी नहीं है।

चाँदनी के सम्बन्ध मे झूठ वर्णन।

कवित्त

भूषण सकल घनसार ही के घनश्याम,
कुसुम फलित केस रही छवि छाई सी।
मोतिन की लरी सिर कठ कंठमाल हार,
बाकी रूप ज्योति जात हेरत हिराई सी॥
चन्दन चढाये चारु सुन्दर शरीर सब,
राखी शुभ सोभा सब बसन बसाई सी।
शारदा सी देखियत देखो जाइ केशोराय,
ठाढी वड कुँवारी जुन्हाई मे अन्हाई सी॥१०॥

हे घनश्याम! वह कपूर ही के सब गहने पहने है और बालो को सफेद फूलो से सजाए हए है जिससे, शोभा फैली हुई है। शिर पर मोतियो की लड़ी तथा गले मे कंठमाला है, जो उसके रूप में खोसे गए है और वह उन्हे खोजती सी जान पडतो है। वह पूरे शरीर पर चन्दन लगाए हुए है जिसने उसकी सुन्दर शोभा भी रखी है और वस्त्र भी महका दिये हैं। ( केशवदास किसी दूती की ओर से कहते है कि ) वह चाँदनी मे नहाई हुई सी नायिका शारदा सी दिखलाई पड़ती है, उसे जाकर देखिए।