पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/५५

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काजल लगाकर चंचल नेत्रो से देखना। इन सोलह श्रृंङ्गारो को करके बोल, हंसी और सुन्दर चाल से प्रतिक्षण पतिब्रत का पालन करना चाहिए। 'केशवदास' कहते है कि---हे राधे! इस तरह सोलह श्रृँगारो से अपने को सजाओ।'

दोहा

कुलटनि को पति प्रेमबस, बारबधुनि धन जानु।
जाहि दई पितु मातु सो, कुलजा को पति मानु॥१८॥

कुलटा स्त्री का पति प्रेम और गणिकाओ का पति धन समझो और जिसे माता पिता दे दे उसे कुलवती स्त्री का पति मानो। ( तात्पर्य यह है कि कुलटा स्त्री जिसे प्रेम करती है, उसे अपना पति मान लेती है, वेश्याएँ धन देनेवाले को पति समझती है और कुलवती स्त्री का वही पति होता है जिसे उसके माता पिता विवाह करके दे देते हैं। )

महापुरुष को प्रगट ही, वरणत वृषभ समान।
दीप, थम, गिरि गज, कलश, सागर, सिह, प्रमान॥१९॥

महापुरुष को वृषभ, दीपक, स्तम्भ, गिरि, जग, कलश, सागर और सिंह के समान वर्णन करते है।

उदाहरण

कवित्त

गुण मणि आगर अरु धीरज को सागरु,
उजागर धवल धरि धर्मधुर धाये जू।
खल तरु तोरिवे को, राजै गजराज सम,
अरि गज राजन को सिह सम भाये जू॥
बामिन को बामदेव, कामिनि को कामदेव,
रण जय थम राम देव मन भाये जू।
काशी कुल कलश, सुबुद्ध जबू दीप दीप,
केशोदास कल्पातरु इन्द्रजीत आये जू॥२०॥

'केशवदास' कहते हैं कि गुणरूपी मरिणयो की खान, वैर्य के सागर, यशस्वी, धर्मात्मा, खलरूपी वृक्ष को तोड़ने के लिए हाथी स्वरूप, शत्रु-