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पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/५६

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रूपी गज के लिए सिंह के समान, विरोधियो के लिए श्री शंकर जैसे, स्त्रियो के लिए कामदेव स्वरूप, रण में विजय-स्तम्भ श्रीराम के समान, काशी-कुल-कलश, नबू द्वीप ( भारतवर्ष ) के दीपक स्वरूप कल्पवृक्ष समान इन्द्रजीत पधारे हैं।

दोहा

बृषभ कध स्वर मेघसम, भुजधुज अहि परमान।
उरसम शिलाकपाट अँग, और तियानि समान॥२१॥

पुरुषो के कधे वृषभ के समान, उनका स्वर बादलो जैसा, भुजाएँ ध्वजा और साँप जैसी और उर शिला या कपाट तुल्य वर्णन किया जाता है। उनके अन्य अंगो का वर्णन स्त्रियो के अंगों के समान ही किया जाता है।

उदाहरण

कवित्त

मेघ ज्यों गभीर वाणी, सुनत सखा शिरवीन,
सुख, अरि हृदय जवासे ज्यों जरत है।
जाके भुजदड भुवलोक के अभय ध्वज,
देखि देखि दुर्जन भुजग ज्यों डरत है।
तोरिबे को गढ़तरु होत है सिला सरूप,
राखिबे को द्वारन किवार ज्यों अरत है।
भूतल को इन्द्र इन्द्रजीत राजै युग युग,
केशौदास जाके राज, राज सो करत है॥२२॥

जिनकी बादलो जैसी गम्भीर वाणी को सुनते ही मित्ररूपी मोर सुखी होते है और बैरियो का हृदय जवासे के समान जल जाता है। जिसके भुजदंड इस लोक की अभय ध्वजाएँ जैसी है। जिनकी सर्प जैसी भुजाएँ देख देख कर दुष्ट लोग डरते है। जिनकी भुजाएँ गढ रूपी वृक्षो को तोड़ने के लिए शिला समान है और दरवाजो की रक्षा के लिए किवाड़ों जैसी अड़ जाती है वे पृथ्वी के इन्द्र स्वरूप इन्द्रजीत सिंह युग-युग राज्य करते रहे, जिनके राज्य में केशवदास राज्य-सा करते है, अर्थात् राजा की तरह रहते है।