( ७२ )
जिसका कोमल और निर्मल मन है, सरस्वती जैसी सखी जिसके
साथ है, और जो हाथ मे सनाल कमल लिए हुए लक्ष्मी जैसी प्रतीत
होती है । जिसके बिछुओ की ध्वनि सुनकर, हंसो के धोखे मे, हसो के
बच्चे चौंक-चौंक पडते है, जिसकी कमर बाल, कुच, तथा संकोच के भार
से मुकी जाती है, वह बाला धीरे-धीरे बोलती, देखती और हसती है
तथा धीरे-धीरे चलती हुई लाल ( नायक । का मन हरती है ।
१५-शीतलवर्णन
दोहा
मलयज, दाख कलिंद, सुख, ओरे, मिश्री मीत ।
प्रियसंगम, घनसार, शशि, जल, जलरुह हिमि, शीत ॥३७॥
चदन, दाख, (किसमिस ) कलिंद ( तरबूज ) सुख ओला, मिश्री
प्रिय-सगम, कपूर, चन्द्रमा, जल मे उत्पन्न होनेवाली वस्तुएँ, बर्फ तथा
शीत शीतल माने जाते है।
उदाहरण
कवित्त
सीतल समीर टारि, चन्द्र चंद्रिका निवारि,
'केशौदास' ऐसे ही तो हरषु हिरातु है।
फूलन फैलाय डारि, भार डारि धनसार,
चन्दन को टारि चित्त चौगुनो पिरातु है ।
नीर हीन मीन मुरझानी, जीवै नीर ही पै,
छीर के छिरी के कहा धीरजु घिरातु है।
पाई है ते पीर किधौ यो ही उपचार करे,
आग को तो दाध्यो अंग आगिही सिरातु है॥३८॥
( 'केशवदास' एक सखी की ओर से जो अपनी सखी के शीतल
उपचार में लगी है, कहते है, कि ) हे सखी । इस ठडी वायु को हटा
और चन्द्रमा की चांदनी भी दूर कर, क्योकि इन्हीं मे तो मेरा आनन्द
पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/८५
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
