पृष्ठ:कवि-प्रिया.djvu/८६

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लुप्त हो जाता है। फूलो को फेंक दे, कपूर को झाड़ कर अलग कर दे और चन्दन को हटा दे, क्योकि इनसे मेरा मन चौगुना पीड़ित होता है। पानी के बिना मुरझाई हुई मछली पानी ही से जीवित होती है, कहीं दूध छिड़कने से उसे धीरज आ सकता है? तुझे कभी ऐसी पीडा हुई भी है या तू यो ही उपचार कर रही है? जानती नहीं कि आग का जला हुआ अंग आग ही से शीतल होता है।

१६---तप्तवर्णन

दोहा

रिपुप्रताप, दुर्वचन, तप तप्त विरह संताप।
सूरज, आगि, बजागि, दुख, तृष्णा, पाप, विलाप॥३९॥}}

बैरी का प्रताप, दुर्वचन, तप, विरह सताप, सूर्य, अग्नि, वज्राग्नि, दुख, तृष्णा, पाप, और विलाप-तप्त माने जाते हैं।

उदाहरण

कवित्त

'केशौदास' नींद, भूख, प्यास, उपहास, त्रास,
दुख का निवास विष मुखहू गह्यो परै।
वायु को वहन, वनदावा दहन, बड़ी,
वाड़वा अनल ज्वाल जाल मे रह्यो परै।
जीरन जनम जात जोर जुर घोर परि,
पूरण प्रगट परिताप क्यौ कह्यौ परै।
सहि हौ तपन ताप, पर को प्रताप रघु-
वीर को विरह बीर मोपे न सह्यौ परै॥४०॥

'केशवदास' कहते है कि श्री सीता जी श्री हनुमान जी से कह रही हैं कि मै नींद, भूख, प्यास और उपहास का भय सह सकती हूँ तथा परम दुखदायी विष भी मुँह मे डाल सकती हूँ। मै आँधी के झोके और दावाग्नि की जलन भी सह सकती हूँ और बड़वानल की ज्वालाओं के