बिंध्य के बासी उदासी तपोव्रतधारी महा, बिनु नारि दुखारी ।
गौतम तीय तरी, तुलसी, सो कथा सुनि भे मुनिवृन्द सुखारी।
है हैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पद-मंजुल-कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू करुना करि कानन को पगुधारे।
देश-औचित्य
सकल जन्तु अविरुद्ध, जहाँ हरि मृग संग चरहीं,
काम क्रोध मद लोभ रहित लीला अनुसरहीं ।
सब ऋतु सन्त बसन्त कृष्ण अवलोकन लोभा,
त्रिभुवन कानन जा विभूति करि सोभित सोभा ।
श्रीअनन्त महिमा अनन्द को बरनि सकै कवि,
संकरवन सो कछुक कही श्रीमुख जाकी छबि ।
देवन में श्रीरमारमण नारायण प्रभु जस,
कानन में श्रीवृन्दाबन सब दिन सोभित अस ।
कृष्ण की रासलीला के स्थल वृन्दावन का यह वर्णन उपयुक्त है ।
वेई सुर-तरु प्रफुलित फुलवारिन मैं
वेई सरवर हंस बोलन मिलन को ।
वेई हेम-हिरन दिसान दहली जन मैं
वेई गजराज हय गरज-पिलन को ।
द्वार द्वार छरी लिये द्वार पौरिया हैं खरे,
बोलत मरोर बरजोर त्यों भिलन को ।
द्वारिका तें चल्यो भूलि द्वारका ही आयों नाथ
माँगियो न मो पै चारि चाउर गिलन को ॥
नोट-सुदामापुरी का द्वारिकापुरी के समान यह वर्णन उपयुक्त है । देशअनौचित्य