पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/१००

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बिंध्य के बासी उदासी तपोव्रतधारी महा, बिनु नारि दुखारी ।

गौतम तीय तरी, तुलसी, सो कथा सुनि भे मुनिवृन्द सुखारी।

है हैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पद-मंजुल-कंज तिहारे।

कीन्हीं भली रघुनायक जू करुना करि कानन को पगुधारे।

[तुलसीदास—कवितावली]
 

देश-औचित्य

सकल जन्तु अविरुद्ध, जहाँ हरि मृग संग चरहीं,

काम क्रोध मद लोभ रहित लीला अनुसरहीं ।

सब ऋतु सन्त बसन्त कृष्ण अवलोकन लोभा,

त्रिभुवन कानन जा विभूति करि सोभित सोभा ।

श्रीअनन्त महिमा अनन्द को बरनि सकै कवि,

संकरवन सो कछुक कही श्रीमुख जाकी छबि ।

देवन में श्रीरमारमण नारायण प्रभु जस,

कानन में श्रीवृन्दाबन सब दिन सोभित अस ।

[नन्ददास——रासपंचाध्यायी]
 

कृष्ण की रासलीला के स्थल वृन्दावन का यह वर्णन उपयुक्त है ।

वेई सुर-तरु प्रफुलित फुलवारिन मैं

वेई सरवर हंस बोलन मिलन को ।

वेई हेम-हिरन दिसान दहली जन मैं

वेई गजराज हय गरज-पिलन को ।

द्वार द्वार छरी लिये द्वार पौरिया हैं खरे,

बोलत मरोर बरजोर त्यों भिलन को ।

द्वारिका तें चल्यो भूलि द्वारका ही आयों नाथ

माँगियो न मो पै चारि चाउर गिलन को ॥

[नरोत्तमदास——सुदामाचरित्र]
 

नोट-सुदामापुरी का द्वारिकापुरी के समान यह वर्णन उपयुक्त है । देशअनौचित्य

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