इस वर्णन के लिए ‘त्रिभंगीलाल’ नाम ही उचित है । कोई दूसरा नाम रखने से भाव नष्ट हो जायगा ।
पद-अनौचित्य
सिद्ध सिरोमणि संकर सृष्टि संहारत साधु समूह भरी है
यहाँ संहार के वर्णन में ‘संकर’ पद का प्रयोग उचित नहीं है।
अलंकार-औचित्य
अलि नवरंगजेब, चम्पा सिवराज है ।
इन रूपकों का प्रयोग अत्यन्त उचित हुआ है । औरंगजेब शिवाजी के पास नहीं जाता यह भाव अलंकार से स्पष्ट हो जाता है ।
राधे सोने की अंगूठी, स्याम नीलम नगीना है ।
रस-औचित्य
(रौद्र वर्णन में हास्य की सहायता)
निपट निदरि बोले बंचन कुठारपानि,
मानि त्रास औनिपन मानौ मौनता गही ।
रोषे माषे लषन अकनि अनखौहीं बातैं,
तुलसी बिनीत बानी बिहँसि ऐसी कही ।
“सुजस तिहारो भरो भुवननि, भृगुनाथ !
प्रगट प्रताप आपु कहो सो सबै सही ।
टूटयो सो न जुरैगो सरासन महेसजी को,
“रावरी पिनाक में सरीकता कहा रही ?”
रस-अनौचित्य
(वनवास के करुण वर्णन तथा आश्रमों के शांत वातावरण में निम्न लिखित हास्य-रस उचित नहीं मालूम होता)