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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/१९

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चत्वारि श्रृंगास्त्रयोऽस्य पादा द्वे शीर्षे सप्तहस्तासोऽस्य ।


त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मत्या आविवेश ।

ऋग्वेद ३।८।१०।३।
 

इस वैदिक मन्त्र के कई अर्थ किये गये हैं । (१) कुमारिलकृत तन्त्रवार्तिक (१।२।४६) के अनुसार यह सूर्य की स्तुति है। चार ‘शृंग’ दिन के चार भाग हैं । तीन ‘पाद’ तीन ऋतु-शीत, ग्रीष्म, वर्षा । दो ‘शीर्ष’ दोनों छः छः महीने के अयन । सात 'हाथ' सूर्य के सात घोड़े। ‘त्रिधाबद्ध’ प्रातः मध्याह्न-सायं-सवन (तीनों समय से सोमरस खींचा जाता है) । ‘वृषभ’ वृष्टि का मूल कारण प्रवर्तक । ‘रोरवीति’, मेघ का गर्जन । ‘महो देव’ बड़े देवता-सूर्य जिसको सभी लोग प्रत्यक्ष देवता-रूप में देखते हैं। (२) सायणाचार्य ने ऐसा अर्थ किया है-इसमें यज्ञ रूप अग्नि का वर्णन है। चार ‘शृंग’ हैं चारों वेद । तीन ‘पाद’ तीनों सवन-प्रातः मध्याह्न सायं । दो ‘शीर्ष’ ब्रह्मौदन और प्रवर्दी । सात ‘हाथ’ सातों छन्द । ‘त्रिधाबद्ध’ मन्त्र-कल्प-ब्राह्मण तीन प्रकार से जिसका निबन्धन हुआ है । ‘वृषभ’ कर्मफलों का वर्षण करनेवाला । ‘रोरवीति’ यज्ञानुष्ठान काल में मन्त्रादिपाठ तथा सामगानादि शब्द कर रहे हैं । (३) सायणाचार्य ने भी इसे सूर्यपक्ष में इस तरह लगाया है-चार ‘श्रृंग’ हैं चारों दिशा। तीन ‘पाद’ तीन वेद । दो ‘शीर्ष’ रात और दिन । सात ‘हाथ’ सात ऋतु-वसन्तादि छः पृथक् पृथक् और एक सातवाँ ‘साधारण’ । ‘त्रिधाबद्ध’ पृथिवी आदि तीन स्थान में अग्नि आदि रूप से स्थित-अथवा ग्रीष्म-वर्षा-शीत तीन काल में बद्ध । ‘वृषभ’ वृष्टि करनेवाला। ‘रोरवीति’ वर्षाद्वारा शब्द करता है। ‘महो देव’ बड़े देवता । ‘मात्र्याना आविवेश’ नियन्ता आत्मा रूप में सभी जीवों में प्रवेश किया । (४) शाब्दिकों के मत से इस मन्त्र में शब्द रूप ब्रह्म का वर्णन है––जिसको विशद रूप से पतञ्जलि ने महाभाष्य (पस्पशाह्निक पृ० १२) में बतलाया है । चार ‘शृंग’ हैं चारों तरह के शब्द, नाम-आख्यात-उपसर्ग-निपात (उद्योत के मत से परा-पश्यन्ती-मध्यमा-वैखरी) । तीन ‘पाद’ तीनों

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