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पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/३६

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काव्यकवि के आठ प्रभेद हैं--(१) रचना-कवि (२) शब्द-कवि (३) अर्थ-कवि (४) अलंकार-कवि (५) उक्ति-कवि (६) रसकवि (७) मार्ग-कवि (८) शास्त्रार्थ-कवि । (१) रचना-कवि के काव्य में शब्द का चमत्कार रहता है। अनुप्रास, लम्बे समास, आरभटी रीति इत्यादि । (२) शब्द-कवि तीन तरह के होते हैं-एक जो नाम-शब्द (संज्ञा) का प्रचुर प्रयोग करते हैं । दूसरे आख्यात (क्रिया) का अधिक प्रयोग करते हैं । और तीसरे में नाम आख्यात दोनों का प्रचर प्रयोग रहता है । (३) अर्थ-कवि के काव्य में अर्थ का चमत्कार--(४) अलंकार-कवि के काव्य में अलंकारों का चमत्कार--(५) उक्ति-कवि के काव्य में उक्ति का चमत्कार--(६) रस-कवि के काव्य में रस का चमत्कार-(७) मार्ग-कवि के काव्य में मार्ग (ढंग) का चमत्कार--और (८) शास्त्रार्थ-कवि के काव्य में शास्त्र के गूढ़तत्त्वों को सरस रूप में कहने का चमत्कार रहता है ।

इन आठों गुणों में से दो या तीन गुण जिस कवि के काव्य में हों वह नीच श्रेणी का कवि है । जिसके काव्य में पाँच गुण हों वह मध्यम श्रेणी का कवि है । जिसके काव्य में सभी गुण हों वह ‘महाकवि’ है ।

कवियों की दस अवस्थायें होती हैं। इनमें सात तो ‘बुद्धिमान्’ और ‘आहार्यबुद्धि’ कवियों में और तीन ‘औपदेशिक’ कवि में । ये दसों अवस्थायें यों हैं——

(१) काव्यविद्यास्नातक--जो कवित्व-सम्पादन की इच्छा से काव्य-विद्या और उपविद्या पढ़ने के लिए गुरु के पास जाता है ।

(२) हृदय-कवि--जो मन ही मन काव्य करता है, उसे व्यक्त नहीं करता ।

(३) अन्यापदेशी--काव्य-रचना करके कहीं लोग दुष्ट न कह दें इस डर से दूसरे की रचना कह कर प्रकाश करता है ।

(४) सेविता--काव्य करने का अभ्यास हो जाने पर पुरवासी कवियों में से किसी एक की रचना को आदर्श मान कर उसका अनुकरण करता है ।

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