पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/४०

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अधिक अवलम्बन करते हैं--गौडदेशी समासवृत्ति का--दक्षिण-देशवासी तद्धितवृत्ति का--उत्तर-देशवासी कृद्वृत्ति का--और तिब्वृत्ति सभी देश में पसन्द है ।

जिस अर्थ का कहना इष्ट है उस अर्थ के बोधक पदों के समूह को ‘वाक्य’ कहते हैं । वाक्य के बोधन प्रकार तीन हैं--वैभक्त, शाक्त, तथा शक्तिविभक्तिमय । प्रतिपद के साथ जो उपपद या कारक विभक्ति लगी हैं उनके द्वारा जो बोध होता है सो ‘वैभक्त’ है । जहाँ विभक्ति लुप्त हैं--जैसे समासों में--तहाँ जो बोध होता है सो केवल शब्दों के शक्ति द्वारा--इससे इसे ‘शाक्त’ कहते हैं । जिस वाक्य में दोनों तरह के पद हैं वहाँ शक्तिविभक्तिमय है ।

वाक्य के दस भेद हैं:--

(१) एकाख्यात--जिसमें एक ही क्रियापद है ।

(२) अनेकाख्यात--जिसमें अनेक क्रिया हैं । यहाँ अनेक क्रियापद होने के कारण यद्यपि अनेक वाक्य भासित होते हैं तथापि परस्पर सम्बद्ध होने के कारण ये मिलकर एक ही वाक्य समझे जाते हैं ।

(३) आवृत्ताख्यात--जिसमें एक ही क्रियापद बारम्बार आया है ।

(४) एकाभिधेयाख्यात--जिसमें एक ही अर्थ के कई क्रियापद हैं । जैसे--

हृष्यति चूतेषु चिरं, तुष्यति वकुलेषु, मोदते मरुति ।

(५) परिणताख्यात--जिसमें एक ही क्रियापद कई बार आवे पर स्वरूप-भेद से जैसे--

सोऽस्मिन्जयति जीवातुः पञ्चेषोः पंचमध्वनिः ।

ते च चैत्रे विचित्रलाकक्कोलीकेलयोऽनिलाः ॥

यहाँ ‘अनिलाः’ का क्रियापद ‘जयन्ति’ होगा--जो पहली पंक्ति के ‘जयति’ पद का परिणत रूप है ।

(६) अनुवृत्ताख्यात--जिसमें पूर्व वाक्यगत क्रियापद द्वितीय वाक्य के साथ पहले ही स्वरूप में अन्वित होता है । जैसे--

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