पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/४६

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काव्य प्रायः लोग संस्कृत ही भाषा में करते हैं । पर उसके पढ़ने का ढंग वही जानता जिसके ऊपर सरस्वती की कृपा होती है । और यह पढ़ने का ढंग अनेक जन्म के प्रयास से सिद्ध होता है । प्रसन्नता पर स्वर को मन्द करना उचित है, अप्रसन्नता पर तीव्र । ललित--काकुसहित-उज्वल--अर्थ के अनुसार पदच्छेदसहित सुनने में सुखकर--स्पष्ट-ऐसे पाठ की कवि प्रशंसा करते हैं । अतिशीघ्र--अतिविलंबित--अधिक उच्च स्वर में--बिलकुल नादहीन--पदच्छेद रहित-बहुत धीमा--ऐसे पाठ की निंदा होती है । गम्भीरता--अनैश्वर्य---तारमन्द का समुचित प्रयोग-संयुक्त वर्णों की कोमलता--ये पाठ के गुण हैं । जिस पाठ में विभक्तियाँ स्पष्ट हों, समासों में गड़बड़ी न की जाय, पदसन्धि शुद्ध परिस्फुट हो--एसा पाठ प्रतिष्ठित समझा जाता है । पढ़ने के समय विद्वान् को चाहिए कि जो पद पृथक हैं उनको मिला न दें, या जो समस्त हैं उनको अलग न कर दें, और आख्यातपद को मन्द न कर दें । शब्द या शब्दार्थ नहीं भी जानता हो यदि पढ़ने का ढंग अच्छा है तो लोगों को सुनने में अच्छा लगता है ।

देशभद से पढ़ने के ढंग में भेद पाया जाता है । काशी से पूरब मगधादि देशवासी संस्कृत अच्छी तरह पढ़ते हैं--प्राकृत के पढ़ने में ये कुण्ठित हो जाते हैं । गौडदेशवासी प्राकृत गाथा को अच्छी तरह नहीं पढ़ सकते । इनका पढ़ना न अस्पष्ट न खूब स्पष्ट, न रुक्ष न कोमल, न धीमा न ऊँचा है । कोई भी रस हो, कोई भी रीति, कोई भी गुण-कर्णाट देशवासी सभी को गर्व और टंकार के साथ पढ़ते हैं । द्रविडदेशवासी गद्य, पद्य तथा मिश्रित गद्यपद्य सभी को गाने के सुर में पढ़ते हैं । लाट देशवासी संस्कृत से द्वेष रखते हैं वे प्राकृत मधुर रीति से पढ़ते हैं । सुराष्ट्रादि देश-वासी संस्कृत में कहीं-कहीं अपभ्रंश मिलाकर सुन्दर रीति से पढ़ते हैं।काश्मीरवासी शारदा के प्रसाद से ऐसे अच्छे ढंग से पढ़ते हैं कि ऐसा मालूम होता है कि उनके में गुडुची का पानी भरा है (! !) उसके आगे उत्तरा-पथ के वासी अधिक सानुनासिक उच्चारण-पूर्वक पढ़ते हैं । पांचाल-प्रांत-वासियों के पाठ में रीतियों का अनुसरण वर्णरचना का पूर्ण और स्पष्ट

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