पृष्ठ:कवि-रहस्य.djvu/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

संविधानकभू, आख्यानकवान् । सज्जनों के मनोविनोदार्थ यहाूँ उदाहरण मैथिली भाषा के दिये जाते हैं ।

(१) मुक्तक-शुद्ध--जिसमें शुद्ध एकमात्र वृत्तांत है--जैसे

गरभनिवास त्रास हम विसरल पसरल विषयकप्रीति ।

(२) मुक्तक-चित्र--जिसमें वृत्तांत प्रपंच सहित है--

बाँधल छलहुँ गरभघर, जे प्रभु कयल उधार ।

तनिक चरण नहिं अरचह, की गुनि गरब अपार ॥

कोन छन की गति होएत, से नहिं हृदय विचार ।

एक रूप नहि थिररह, विषम विषय संसार ॥

मरमबेधि सहि वेदन, आस तदपि विसतार ।

विषय मनोरथ नव नव करम क गति के टार ॥

(३) मुक्तक-कथोत्थ-जहाँ एक वृत्तान्त से उत्थित दूसरा वृत्तान्त है——

हे शिव छुटल हमर मन त्रास ।

गिरिजावल्लभ चरणक भेलहुँ अन्तिम वयस में दास ॥

जनम जनम कुकरम जत अरजल--से सभ होइछ हरास ।

हमरहु हृदय भक्ति सुरलतिका, अविचल लेल निवास ॥

भन कविचन्द शिवक अनुकम्पा, सब जग शिवमय भास ।

उतपति पालन प्रलय महेश्वर, सभ तुअ भृकुटिविलास ॥

(४) मुक्तक-सँविधानकभू--जहाँ वृत्तान्त सम्भावित है--

भारी भरोस अहाँक रखैछी, कहैछी महादेव सत्य कथा क

दान कहाँ सकरू कर द्रव्य न, एको देखैछी न पुण्य कथा ॥

अपने दयाक दरिद्र वनी तँ, छूटै कहाँ लोकक आधिव्यथा ।

यदि नाथ निरंजन सर्व अहाँ, दुखभार पड़े किए मोर मथा ॥

(५) मुक्तक-लोकाख्यानकवान्--जिसमें वृत्तान्त परिकल्पित है--

आएल वसन्त वनिजार--पसरल प्रेम पसार

युवयुवती जन आव--हृदय अरपि रस पाव ।

- ४८ -