नहीं करना——चन्दन वृक्ष के फूलों का वर्णन नहीं करना——अशोक वृक्ष के फलों का वर्णन नहीं करना——यद्यपि कृष्णपक्ष भर में चाँदनी उतने ही घंटों तक रहती जितना शुक्लपक्ष में तथापि कृष्णपक्ष में चाँदनी का वर्णन नहीं करना——उसी तरह शुक्ल पक्ष में अन्धकार का वर्णन नहीं करना——दिन में नील कमल के विकास का वर्णन नहीं करना——शेफालिका (हरसिंगार) फूल का रात्रि समय के कारण वृक्ष से नहीं गिरने का वर्णन ।
(३) भौम——अनियत को नियत करना । मगर यद्यपि सभी बड़े जलाशयों में पाये जाते हैं तथापि केवल गंगा में इनका वर्णन करना——मोती यद्यपि अनेक जलाशयों में मिलता है तथापि केवल ताम्रपर्णी नदी में इसका वर्णन करना——चन्दन-वृक्ष यद्यपि सर्वत्र हो सकते हैं तथापि मलयपर्वत ही में इमका वर्णन करना——भूर्जपत्र यद्यपि अनेक उच्च पर्वतों में मिलता है तथापि केवल हिमालय में इसका वर्णन करना——कोकिल की की कूक यद्यपि ग्रीष्मादि ऋतु में भी सुन पड़ता है तथापि केवल वसन्त में इसका वर्णन करना——मयूर यद्यपि और समयों में भी नाचते गाते हैं तथापि वर्षा ही में इनका वर्णन करना ।
[ऐसे ही कवि-समयों का एक यह संग्राहक श्लोक प्रसिद्ध है-
स्त्रीणां स्पर्शात् प्रियंगु र्कसति बकुलः सीधुगण्डूषसेकात्
पादाघातादशोकस्तिलककुरवकौ वीक्षणालिङ्गनाभ्याम् ।
मन्दारो नर्मवाक्यात्पटुमधुहसनाच्चम्पको वक्तवातात्
चूतो गीतान्नमेरुर्विकसति हि पुरोनर्तनात् कर्णिकारः॥
अर्थात्——प्रियंगु स्त्रियों के छूने से फूलता है, बकुल स्त्रियों के मुख से दिये हुए मद्य के छींटे से, अशोक उनके पैर के आघात से, तिलक उनके ताकने से, कुरवक उनके आलिगन से, मन्दार उनके मधुर वचन से, चम्पक उनके कोमल हँसी से, आम उनके मुखवायु से, नमेरु उनके गीत से, कर्णिकार उनके नाचने से]
ये हुए द्रव्यों के प्रसंग कवि-समय । गुणोंके प्रसंग कवि-समय यों हैं——
(१) असत् गुण का वर्णन । पुण्य, यश और हास को श्वेत कहना,