अयश और पाप को काला——क्रोध, अनुराग इत्यादि को लाल ।
(२) सत् गुण का नहीं कहना । कुन्द फूल की कलियाँ यद्यपि लाल-सी होती हैं तथापि इनकी लालिमा का वर्णन नहीं करना——कमल की कली यद्यपि हरी होती है तथापि इस हरियाली का वर्णन नहीं करना ।
(३) अनियत गुण को नियत करना——सामान्यतः मणियों को लाल कहना, फूलों को श्वेत, मेघ को काला । यद्यपि मणि और फूल नाना रंग के होते हैं और मेघ भी सभी काले नहीं होते ।
इनके अतिरिक्त और कई तरह के कवि-समय भी हैं । कृष्ण-नील को एक कहना, इसी तरह कृष्ण-हरित को, कृष्ण-श्याम को, पीत-रक्त को, शुक्ल-गौर को । फिर नेत्रादि को नाना वर्ण करके वर्णन करना । आँखों के वर्णन में कहीं शुक्लता, कहीं कृष्णता, कहीं मिश्रवर्ण का वर्णन पाया जाता है ।
स्वर्गीय विषयक कवि-समय ये हैं । (१) चन्द्रमा के वर्णन में शश और हरिण को एक करना । (२) कामदेव के चिह्न में मगर और मत्स्य को एक करना । (३) ‘अत्रिनेत्रसमुत्पन्न’ और ‘चन्द्र’ को समानार्थ करना ।(४) शिवभालस्थचन्द्रमा की उत्पत्ति हुए हजारों वर्ष हुए तथापि उनका वर्णन ‘बाल’ (बच्चा) ही करके होता है । (५) काम है इच्छाविशेष.इसे शरीर नहीं है, तथापि इसके शरीर धनुष, तीर इत्यादि का वर्णन । (६) सूर्य है १२, पर वर्णन एक ही करके होता है । (७) ‘लक्ष्मी’--‘सम्पत’ तुल्यार्थ समझे जाते हैं ।
पातालीय विषयक कविसमय——(१) नाग और सर्प को एक मानना । (२) दैत्य, दानव, असुर यद्यपि भिन्न हैं तथापि एक मानकर ही वर्णित होते हैं । यथार्थ में हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु, प्रह्लाद, विरोचन, बाण इत्यादि दैत्य थे । विप्रचित्ति, शम्बर, नमुचि, पुलोम, इत्यादि ‘दानव’ थे--और बल, वृत्र, विक्षुरस्त, वृषपर्व इत्यादि ‘असुर’ थे ।
कवि को देश, काल के विभागों का ज्ञान आवश्यक है ।