'ये आपके साथ उस दिन मेरठ जा रही थीं?'
'ये कल ही कलकत्ता से आई हैं।'
'तब उस दिन आपके साथ कौन थी?'
'किस दिन? मुझे कुछ याद नहीं आता। आप किस दिन की बात कह रहे हैं।
दारोगाजी बोल उठे—यह तो अच्छी दिल्लगी है।
मैंने कहा--जनाब, दिल्लगी के योग्य मेरा-आपका कोई रिश्ता नहीं है।
सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब झल्ल्ला उठे। बोले--आपके मकान की तलाशी ली जाएगी, यह वारण्ट है।
मैंने और भी गुस्से और लाचारी के भाव दिखाकर कहा--विरोध करना फजूल है, आप जो चाहें, सो करें। मैं कानूनी कार्यवाही कर लूंगा।
छः-सात घण्टों तक तलाशी होती रही। पुलिस ने सारा घर छान डाला।
खीझकर सुपरिण्टेण्डेण्ट साहव बाहर निकल आए। मैंने भी खूब रोष दिखाकर कहा--जनाब, अब आप ज़रा तलाशी पर अपनी रिपोर्ट भी लिख दीजिए।
सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब मेरी ओर घूरने लगे, पर मैंने बाजी मार ली थी। वही धवल दंत-पंक्ति मेरी आंखों में प्रकाश डालकर हृदय में साहस का संचार कर रही थीं। सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब ने कहा--क्या आप उस स्त्री के विषय में कुछ भी नहीं बताएंगे?
'किस स्त्री के सम्बन्ध में?'
'जो उस दिन आपके साथ मेरठ जा रही थी।'
'किस दिन?'
सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब चुपचाप होंठ चबाते रहे। दारोगाजी झेप रहे थे। बड़बड़ा भी रहे थे। सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब ने हैट उठाकर कहा--बहुत अच्छा, अभी तो जाते हैं। लेकिन बेहतर था, आप सब बता देते।
मैंने ज़ोर से मेज़ पर हाथ पटककर कहा--कल ही मैं आपसे अपने इस अपमान का जवाब तलब करूंगा।..
सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब चल दिए। मैं भी साथ ही बाहर तक आया। सैकड़ों आदमी इकट्ठे हो गए थे। जब पुलिस अपनी लारी में लद गई तो मैंने पूछा-आप ईश्वर के लिए यह तो बता दीजिए कि आप किसे ढूंढ़ते फिरते हैं?
सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब ने खीझकर कहा-मिसेज़ भगवतीचरण को।