एक करके राजघाट के फाटक से चले गए। इनके जाने के बाद कप्तान बादशाह के पास फिर हाजिर हुए। बादशाह ने किला और शहर के दरवाजे बन्द करने के लिए कहा, जिससे विद्रोही भीतर न आ सकें। कप्तान डगलस ने बादशाह को विश्वास दिलाया कि भय की कोई बात नहीं है और वे उचित प्रबन्ध करेंगे।
यह कहकर कप्तान डगलस चले गए और वादशाह अपने कमरे में चले आए। अब्बास और हकीम अहसानुल्लाखां दोनों दीवाने-खास में आकर बैठ गए। यहां इन्हें बैठे हुए एक घण्टा बीता होगा कि कप्तान डगलस का खिदमतगार एक रुक्का लिए हुए दौड़ता आया, जिसमें हकीम अहसानुल्लाखां को बुलाया था। अहसानुल्लाखां ने अब्बास को भी साथ ले लिया। जो आदमी उन्हें लेने के लिए आया था, उसने कहा था कि कप्तान डगलस कलीदखाने में हैं। परन्तु वहां पहुंचकर मालूम हुआ कि वे अपने मकान पर चले गए हैं। इसी समय उन्होंने दरियागंज में बहुत-सा धुआं उड़ते देखा। और राह-चलतों की ज़बानी सुना कि सवार बंगलों पर फायर कर रहे हैं। जब वे गश्त करते हुए कप्तान डगलस के निवास-स्थान पर लाहौरी दरवाजे (किले के) पर पहुंचे तो मालूम हुआ कि वे तीसरे कमरे में हैं। बीच के कमरे में मिस्टर सीमैन फ्रेजर मिले। हकीम अहसानुल्लाखां कप्तान डगलस से मिलकर फिर किले के अन्दर चले गए। और अब्बास मिस्टर फ्रेज़र के अनुरोध से इनके साथ हो लिए। ये बादशाह से दो तोपें और कुछ पैदल सवार कप्तान डगलस के निवास स्थान की रक्षा के लिए मांगने जा रहे थे। अब्बास और मि० फ्रेजर सीढ़ियों से उतर आए, उनके साथ एक सज्जन और थे। मि० फ्रेजर के पास एक तलवार थी और इनके साथी के पास एक हाथ में पिस्तौल और दूसरे में बन्दूक थी। मि० फेज़र ने जल्द पहुंचने की इच्छा की। बादशाह के कमरे में पहुंचकर उन्होंने ज्योंही खबर कराई बादशाह बाहर आ गए। अब्बास ने मि० फेज़र की प्रार्थना बादशाह से निवेदन की। बादशाह ने सुनते ही तमाम फौज जो उस वक्त उपस्थित थी, कुछ अफसरोंसहित, जो मिल सके, दो तो लेकर फौरन कप्तान डगलस के निवास स्थान पर पहुंचने की आज्ञा दी। इसी समय हकीम अहसानुल्लाखां भी आ गए। उन्होंने बादशाह से कहा कि कप्तान डगलस ने दो पालकियों के लिए भी प्रार्थना की है। जिससे लेडियों को, जो इनके मकान में ठहरी हैं, हरमसरा में लाकर छिपा दिया जाए। बादशाह ने हकीम अहसानुल्लाखां से बन्दोबस्त करने के लिए कहा। और नियत सेवकों को दो पालकियां और उनके उठाने के