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ग्यारहवीं मई
 


लिए विश्वासी कहारों को भेजने का हुक्म दिया और कहा-उन्हें सीधे रास्ते न लाएं। किन्तु बाग के पीछे से चक्कर देकर लाएं, जिससे विद्रोही सवारों को, जो किले में घुस गए हैं, यह न मालूम होने पाए।-बादशाह हुक्म देकर अन्दर खड़े हुए जल्दी की ताकीद कर रहे थे और हकीम अहसानुल्लाखां इनके पास खड़े हुए थे। थोड़ी देर बाद एक सेवक, जो पालकियां लेने गया था, वापस आकर कहने लगा कि पालकियां भेज दी गई हैं। परन्तु थोड़ी देर बाद पालकियोंवाले भी उलटकर आ गए। उन्होंने सूचना दी कि मि० फेज़र कत्ल कर दिए गए।

यह दस बजे से पहले की घटना है। हकीम अहसानुल्लाखां ने फिर दूसरा आदमी ठीक खबर लाने को भेजा। साथ ही कप्तान डगलस कहां हैं, यह भी दर्याफ्त कराया। वे लोग कुछ देर बाद वापस आए और कहा कि मि फेज़र ही नहीं किन्तु कप्तान डगलस और उनके साथवाली स्त्रियां भी कत्ल कर डाली गई।

बादशाह यह सुनकर अन्दर चले गए, मगर गुलामअब्बास हकीम अहसानुल्लाखां के साथ अत्यन्त साहस करके दीवानखाने के कमरे में चला आया। तत्काल बाद ही पैदल सिपाहियों के दोनों दस्ते, जो किले के फाटकों पर थे, मेरठ के बागी सवारों को साथ लिए हुए दीवाने-खास में आए, जहां इन लोगों ने बन्दूकों और पिस्तौलों से हवा में फायर किए और एक हंगामा जमा कर दिया। बादशाह शोरगुल सुनकर अन्दर से निकल आए और दीवाने-खास के दरवाजे पर खड़े होकर अपने खिदमतगारों से कहा-लोगों को शोर मचाने से रोको और सिपाहियों को आगे आने को कहो।-फिर शोर बन्द हो गया। और अफसर सवार उसी तरह घोड़ों पर चढ़े हुए बादशाह के पास आए और कहा-वे चाहते हैं कि कारतूसों का इस्तेमाल एकदम बन्द कर दिया जाए, जो हिन्दू और मुसलमान दोनों के मजहब के खिलाफ है। क्योंकि इनमें सुअर और गाय की चर्बी है। और उन्होंने यह भी कहा कि हाल ही में उन्होंने मेरठ के तमाम अंग्रेजों को कत्ल कर डाला है, और अब वे बादशाह से सहायता चाहते हैं। बादशाह ने जवाब दिया-मैंने तुम्हें नहीं बुलाया था। यह तुमने बड़ी दुष्टता का काम किया। इसपर एक सौ या दो सौ के लगभग सिपाही जो मेरठ से आए थे, आगे बढ़े और दीवाने-खास में घुस गए और कहाजब तक हुजूर बादशाह हममें सम्मिलित न हों, हम मुर्दा लोग हैं और कुछ भी नहीं कर सकते। फिर बादशाह एक कुर्सी पर बैठ गए और सिपाही, सवार, अफसर एक के बाद दूसरे आते गए और जमीन पर गिर-गिरकर बादशाह को अपना हाथ इनके