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ग्यारहवीं मई
 

 गया। किसी तरह का प्रबन्ध सम्भव न था, बेहद शोर हो रहा था। न खाने का प्रबन्ध था न पानी का। कोई न किसीकी आज्ञा मानता था और न कुछ सुनता था।

शाम हो रही थी, शहर में चारों ओर आग ही आग दीख रही थी। पद-पद पर विपद और अशान्ति बढ़ रही थी, आसपास के सिपाही बे-कहे हो रहे थे। अन्त में सबने जैसे बना वहां से भाग जाने में खैर समझी। जिधर जिसका सींग समाया भाग निकला। कोई करनाल, कोई मेरठ और कोई किसी ओर।

उसी दिन सुबह सात-आठ बजे के बीच सर पी ओफल्स मेटकाफ युगली साहब के मकान पर गए और कहा-मेगजीन में चलकर दो तो निकलवा दीजिए और उन्हें पुल पर भिजवा दीजिए जिससे विद्रोही पुल न पार कर सकें।

युगली साहब मेटकाफ साहब के साथ मेगज़ीन तक आए। वहां लेफ्टिनेण्ट ड्यूली, लेफ्टिनेन्ट रेंज, कंडक्टर और एक्टिङ्ग सब-कण्डक्टर कटरो तथा सार्जण्ट एडवर्ड और स्टुअर्ट अपने हिन्दुस्तानी अमले के साथ हाज़िर थे। सर पी ओफल्स अपनी गाड़ी से उतर पड़े और लेफ्टिनेण्ट ड्यूली के साथ बुर्ज पर गए जो यमुना की तरफ था। वहां से पुल साफ नजर आ रहा था। वहां पहुंचकर देखा तो विद्रोही पुल को पार कर रहे थे। यह देखते ही सर पी और मेटकाफ लेफ्टिनेण्ट ड्यूली को लेकर तुरन्त शहरपनाह के दरवाजे देखने गए, जो सब खुले थे और विद्रोही उसमें शोर मचाते हुए प्रविष्ट हो रहे थे। यह देख लेफ्टिनेण्ट घोड़ा दौड़ाते हुए मेगज़ीन में वापस आए और उसके दरवाजे बन्द कराकर तेगे लगवा दिए और दरवाजे के भीतर दो तोपें छः पन्नी की दुचन्द गर्राव भरवाकर एक्टिङ्ग सब-कन्डक्टर और सार्जेण्ट स्टुअर्ट की अधीनता में दे दी। इन लोगों को बत्तियां देकर हुक्म दे दिया गया कि अगर विद्रोही दरवाजे के भीतर घुसें तो तो सर कर दी जाएं। मेगज़ीन का बड़ा दरवाजा भी उसी तरह दो तोपों से मज़बूत कर दिया गया तथा दरवाजों के अन्दर गोखरू बिछवा दिए गए। इसके सिवा दो तोपें दूरदर्शिता के खयाल से इस तरह और रखवा दी गईं कि उनका गोला दरवाजे और बुर्ज तक पहुंच सके। दरवाज़ों तथा सामान के दफ्तर के बीच के रास्ते में छ:-छः पन्नी और चौबीस पन्नी का गुब्बारा इस तरह गाड़ दिया गया था कि जिधर चाहें घुमाकर आसपास के मकानों की रक्षा कर सकें। इन सब गुब्बारों और तोपों में दूने गर्राव छरे भरवा दिए गए थे।