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मृत्यु-चुम्बन
 

पर कुंडनी ने उसकी बात पर कान नहीं दिया। सिंहासन पर खड़े होकर कहा-महासामर्थ्यवान शम्बर के स्वास्थ्य और दीर्घायु के नाम पर।-और प्याले भर-भरकर असुरों को देने लगी। असुर उस अनिन्द्य सुन्दरी के हाथ से मद्य पी-पीकर नाचने लगे।

शम्बर ने दोनों हाथ फैलाकर कहा- मुझे भी दे मानुषी, एक भाण्ड मद्य।कुण्डनी खट से सिंहासन से कूद, मद्य-भांड हाथ में ले लीला-नृत्य करने और असुरराज के चारों ओर घूमने लगी। उसका मदभरा यौवन, उज्ज्वल मोहक रूप और गज़ब की भावभंगी देख शम्बर काम-विमोहित हो गया और कुण्डनी के चारों ओर नाचने और बार-बार मद्य मांगने लगा। कुण्डनी ने समूचा सुरा-भाण्ड हंसते-हंसते शम्बर के मुंह से लगा दिया। असुर गटागट पूरा घड़ा कण्ठ से उतार गया।

कुण्डनी ने सोम से कहा-इन मूरों से चिल्लाकर कहो-खूब पियो, स्वयं ढालकर, सामर्थ्यवान शम्बर के नाम पर।-सोम के यह कहते ही असुर-दल ने सुरा-भाण्डों में मुंह लगा दिया। वे सब गटागट पीने लगे। कुण्डनी ने सन्तोष की दृष्टि से सोम की ओर देखकर कहा-ठीक हुआ। खूब पिलामो मूों को, आज मरेंगे ये सब।

'तुम अद्भुत हो कुण्डनी।'

मद्य असुरों पर प्रभाव दिखाने लगा। वे खूब हंसी-दिल्लगी करने लगे। स्त्रियों तथा बालकों ने भी मद्य पिया। सोमप्रभ उन्हें और भी उत्साहित करके बार-बार पिलाने लगा । बुद्धिहीन असुर अन्धाधुंध पी रहे थे। पीते-पीते बहुत-से तो वहीं लोट गए। शम्बर का बुरा हाल था। वह सीधा खड़ा नहीं रह सकता था । पर कुण्डनी उसे नचा रही थी। वह नाचता था,हंसता था और आसुरी भाषा में न जाने क्या-क्या अंट-शंट बकता था।

कुण्डनी ने सोम से कहा- इन्हें आकण्ठ पिला दो सोम, भाण्ड में एक बूंद भी मद्य न रहे।

शम्बर ने कुण्डनी की कमर में हाथ डालकर कहा-मानुषी, मेरे और निकट आ।

'अभागे असुर, तू मृत्यु का आलिंगन कर रहा है।'

शम्बर ने सोम से कहा-वह क्या कहती है हे मानुष?

'कहती है कि आज आनन्दोत्सव है, सब असुर-वीरों को छककर मद्य पीने