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मृत्यु-चुम्बन
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जहां के तहां मरकर ढेर हो गए।

अब शम्बर ने सावधान हो आँखें तरेरकर कुण्डनी की ओर देखा। कुण्डनी ने मुस्कराता हुआ बंकिम कटाक्ष मारकर एक परिपूर्ण मद्य-पात्र ले उसके होंठों से लगा दिया। पर उसने मद्य-पात्र फेंककर कहा-क्या तूने मेरे तरुणों का वध किया?

सोमप्रभ ने कहा-मैंने तो पहले ही कहा था कि यह नागपत्नी है। असुर अपने ही दोष से मरे हैं। शम्बर ने स्वयं ही उन्हें चुंबन की आज्ञा दी थी।

'परन्तु यह मानुषी अति भीषण है।' उसने प्यासी चितवन से कुण्डनी की ओर देखा। कुण्डनी ने समूचा भाण्ड उसके मुंह से लगा दिया। उसे पीकर होंठ चाटते हुए असुर ने उठना चाहा, पर लड़खड़ाकर गिर गया। कुण्डनी ने और एक भाण्ड उसके मुंह से लगा दिया। उसे भी पीकर असुर ने कुण्डनी को हृदय से लगाकर कहा-दे, मृत्यु-चुंबन दे, मानुषी। तेरे स्वर्ण-अधरों को एक बार चूमकर मरने में भी सुख है।

इस समय चारों ओर मृत असुरों के ढेर जहां-तहां पड़े थे। भयभीत असुर भाग रहे थे। बहुत-से बदमस्त पड़े थे। कुण्डनी ने यत्न से असुर के बाहुपाश से अपने को निकालकर दूसरा मद्य-पात्र उसके होंठों से लगा दिया। उसे पीकर शम्बर बदहवास आसन पर गिर गया। कुण्डनी को बरबस खींचकर वह अपनी अस्त-व्यस्त आसुरी भाषा में कहने लगा-द'ददे मानुषी एक चुंबन, और मागध विम्बसार के लिए मेरी मैत्री ले। दे चुंबन, दे।

कुण्डनी ने मर्म की दृष्टि से सोम की ओर देखा। उसका अभिप्राय यह था कि असुर को मारा जाए या नहीं। पर सोम ने खींचकर कुण्डनी को शम्बर के बाहुपाश से अलग किया और हांफते-कांफते कहा- नहीं, असुरराज को मारा नहीं जाएगा। बहुत हुआ, समझ गया, तुम विषकन्या हो।

फिर उसने शम्बर के कान के पास मुंह ले जाकर कहा-महान शम्बर चिरंजीव रहें। वह मागध बिम्बसार का मित्र है। उसे मृत्यु-चुंबन नहीं लेना चाहिए।

शम्बर ने कुछ होंठ हिलाए, और आँखें खोलने की चेष्टा की, पर वह तुरन्त काठ के कटे कुंदे की भांति गिर गया। सोम ने कुण्डनी से कहा-उसे छोड़ दो, कुण्डनी।