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वासवदत्ता
 

वाले हाथी से परकोटा तुड़वाकर उज्जयिनी से बाहर निकले। रक्षकों को राजा ने तलवार की धार उतार दिया। हथिनी वेगपूर्वक दौड़ चली।

चण्डमहासेन को राजकुमारी तथा राजा के भाग जाने का समाचार ज्योंही मिला, उसने अपने पुत्र गोपालक को नाड़ागिरि पर सवार कराकर पीछे दौड़ाया। उसे राजा ने युद्ध में परास्त कर भगा दिया। हथिनी ने रात-भर और आधे दिन चलकर तिरेसठ योजन भूमि पार की और विध्य-वन में पहुंची। यहां हथिनी को प्यास लगी। राजासहित सबके उतरने पर हथिनी ने पानी पिया तथा मर गई। इससे राजा और राजकुमारी को बहुत दुःख हुआ। उसने वसन्तक को आगे अपने मित्र पुलिन्दक को सूचना देने भेजा। पीछे धीरे-धीरे राजकुमारी के साथ आगे चलने लगे। इसी समय डाकुओं ने उन्हें घेर लिया। राजा ने धनुष-बाण ले उनमें से अनेकों को मार डाला। इसी समय पुलिन्दक और यौगन्धरायण सेनासहित आ मिले। पुलिन्दक राजा को अपने गांव में ले गया। वहां वन की कुशाओं से फटे पैरवाली वासवदत्ता और राजा रात-भर रहे। प्रातःकाल मन्त्री रुमण्वान बहुत-सी सेना लेकर ठाट-बाट से राजा-रानी की अगवानी को आया। यहीं शक दूत ने राजा को सूचना दी कि राजा चण्डमहासेन ने अपना दूत भेजा है। दूत ने राजा की सेवा में उपस्थित होकर प्रणाम कर कहा-महाराज महासेन आपपर प्रसन्न हैं और उन्होंने कहलाया है कि शीघ्र ही गोपालक पाकर अपनी बहिन का विवाह विधिवत् कर जाएगा, तब तक आप ठहरें। ठहरने को कह कौशाम्बी के दूत ने पुलिदक के ग्राम में गोपालक के आने तक को प्रस्थान किया, जहां उसका खूब धूमधाम से स्वागत हुआ। राजा और रानी की समस्त पुरवासीजनों तथा सभागत राजाओं ने राजमहल में अभ्यर्थना की।

कुछ दिन बाद बहुत-सा धन, रत्न, हाथी, घोड़ा और खज़ाना लादकर गोपालक आया और उसने धूमधाम से बहिन का विवाह राजा से कर दिया। इससे उदयन की समृद्धि चौगुनी हो गई तथा वह अपनी प्रियतमा वासवदत्ता के साथ सुख से रहने लगा।