एक दिन बूढ़े सर्वराहकार रोते हुए मेरे पास आए। चौवारे आंसू बहाते हुए उन्होंने कहा-बर्बाद हो गया, छोटे सरकार! लुट गया! लड़की मेरी विधवा हो गई, उसकी तकदीर फूट गई। मेरी इकलौती बेटी थी सरकार, उसे बेटा बनाकर पाला था। उसपर यह गाज गिरी।
बूढ़ा बहुत देर तक रोता रहा। यद्यपि वे सब बातें मैं भूल चुका था, पर स्मृति के चिह्न तो बाकी ही थे। सुनकर मुझे दुःख हुआ। बूढ़े को तसल्ली दी। और जब वह चला गया, एक बूंद प्रांसू मेरी आंख से भी टपक पड़ा। वाहियात बात थी। लेकिन मन का सच्चा तो सदा से हूं। मेरा मन द्रवित हो गया। बूढ़े ने कहा था कि वह उसे यहां ले आया है, तब एक बार उसे देखने की भी लालसा हो गई। पर वह सब बात मन की थी, मन में रही। महीनों बीत गए। कभी-कभी उसका ध्यान आता, दया आती, पर कुछ विशेष आकर्षण न था। सुषमा धीरे-धीरे कमज़ोर और पीली पड़ती जा रही थी। मुझे उसकी चिन्ता थी। ज्यों-ज्यों डिलीवरी का समय निकट आ रहा था, मेरी उद्विग्नता बढ़ती जाती थी-इन सब कारणों से मैं उस बिचारी विधवा को भूल ही गया। सुषमा के प्यार ने मुझे अभिभूत कर लिया था। सुषमा मेरे जीवन का आधार थी। और अब मैं इस प्रकार के विचारों को भी मन में रखना पाप समझता था। मुझे पाकर सुषमा भी खुश थी। वह देवता की भांति मेरी पूजा करती थी।
मिसेज़ शर्मा एकदम द्रवित हो उठीं। उन्होंने कहा-भई बंद करो। आप सचमुच देवता हैं। आप जैसा पति पाने के कारण मैं तो सुषमा बहिन से ईर्ष्या करती हैं।
मैं जैसे चीख पड़ा। मेरे गले की नसें तन गईं और मुट्ठियां भिंच गईं। मैंने कहा-श्रीमतीजी, जल्दी अपनी राय कायम न कीजिए, पूरी कहानी सुन लीजिए।
मेरी बहशत और भावभंगी देख मिसेज़ शर्मा डर गईं। वे फटी-फटी आंखों से मेरी ओर टुकुर-टुकुर देखने लगीं। मैं इस योग्य न था कि इस समय उनसे अपने अशिष्ट व्यवहार के लिए क्षमा मांगूं। मैंने कहानी आगे बढ़ाई:
एक दिन देखता क्या हूं कि वह सुषमा के पास बैठी है। इस समय वह यौवन से भरपूर थी। उस समय यदि वह खिलती कली थी तो आज पूर्ण विकसित पुष्प। परिधान उसका साधारण था। पर स्वच्छता और सलीका, जो बहुधा देहात में नहीं देखा जाता, उसकी हर अदा से प्रकट होता था। उसका रंग अब ज़रा और