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पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/१८१

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प्यार
 

'ऐसी बात मत कहो, बहिन।'

'तो बहिन, किस्मत के दरिया में अपनी ज़िन्दगी की किश्ती को छोड़ दो और देखो कि वह कहां जाकर ठहरती है। पहले ही से कोई इरादा पक्का न करो। जब जैसा देखना, वैसा ही करना। तुम समझदार औरत हो।'

'तो आप क्या सलाह देती हैं?'

'आगरा जाओ, और अवसर मिले तो हिन्दुस्तान की मलिका बनो, और ऐसी हकूमत करो कि हिन्दुस्तान तुम्हारी एक नज़र से कांप उठे। बादशाह को अपने चरणों का गुलाम बनायो। लेकिन अनादर ही पायो, तो बेशक जहर पी लो।'

मेहर निरुत्तर हो गई। वह सिर नीचा करके सोचने लगी। उसे अपनी छाती के निकट खींचकर रानी ने कहा-मेहर, भारत की अधीश्वरी होकर तुम बहुतों का भला करोगी। इतिहास में तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा। आशीर्वाद देती हूं। जाओ, एक दिन तुम्हें सलाम करने मैं भी आगरा पाऊंगी।"

आगरा के रंगमहल में रूप और धन-रत्न का अटूट भण्डार भरा था। हीरा, मोती, माणिक कंकड़-पत्थरों की भांति समझे जाते थे। षोडशी रूपवती नवयुवतियों का वहां जमघट था। देश-देश के एलची, सूबेदार, कारबरदार सालाना खिराज़ और नज़राने के तौर पर अपने प्रदेशों की षोडशी अनिन्द्य सुन्दरी कुमारियों को बादशाह के हरम में भेजते रहते थे। उन्हें नाचने, गाने, सेवा करने और कसीदाकारी तथा चित्रकारी के फन में निपुण किया जाता था। और तब उन्हें शाही खिदमत में ले लिया जाता था। जिन लड़कियों को शाही खिदमत करने का सौभाग्य प्राप्त होता था, उनकी किस्मत खुल जाती थी। उनका परिवार सोने और हीरे-मोतियों से लद जाता था। लेकिन हरम से बाहर कदम रखने का उन्हें हुक्म न था। बाहरी हवा में सांस लेना उनके लिए निषिद्ध था। हरम के भीतर वे फूलों से भरी क्यारियों में किल्लोल करतीं, फौवारों से अठखेलियां करती, इत्र में स्नान करतीं, ऐश्वर्य और आनन्द की बहार लूटतीं। परन्तु हरम से बाहर निकलने पर खूख्वार कुत्तों से नुचवा डाली जाती थीं। यही सज़ा उनकी भी थी, जो किसी मर्द से बातें करती या हंसती-वोलती देखी जाती थीं। शाही हरम के सभी रंग-ढंग निराले थे, जहां अकेला बादशाह स्वतन्त्र था, और सब लोग उसकी इच्छा