पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/२१३

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शेरा भील

मुगल सैन्य ने गांव पर धावा बोल दिया। उस समय गांव में केवल एक वृद्ध भील उपस्थित था। उनाने उनसे मोर्चा लिया और प्राणों की आहुति दी। उस वीर वृद्ध की रमृति में आज भी भील बालाएं गीत गाती

जिन दिनों औरंगजेब ने मेवाड़ की भूमि को चारों तरफ से घेर रखा था, उन दिनों की बात है। सारे राज्य-भर में सन्नाटा छा गया था। गांव उजाड़ दिए गए थे। कुएं पाट दिए गए थे। खेत जला दिए गए थे, और सब प्रजाजन अपने पशुओंसहित अरावली की दुर्गम घाटियों में चले गए थे।

मुगलों को बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा था। हुकूमत और घमण्ड से मुगलों के प्रत्येक सिपाही का मिजाज चौथे ग्रासमान पर चढ़ा रहता था। ऐयाशी और रंगीली तवियतदारी उनमें हो ही गई थी। बादशाह के प्रति कुछ उनकी ऐसी ज्यादा श्रद्धा भी न थी, क्योंकि शाही सेना में सिर्फ मुगल ही हों, यह बात न थी। मुगल, पठान, सैयद, शेख और न जाने कौन-कौन धुनिये-जुलाहे भर गए थे। वे सिर्फ अपनी नौकरी बजाने को सिपाहीगीरी करते थे। प्रत्येक सिपाही अपने जान-माल की हिफाज़त करने के लिए व्यग्र रहता था, और यथाशक्ति आरामतलबी चाहता था।

इसके विपरीत राजपूतों में अपने देश के लिए रस था। वे प्राणों को हथेली पर रख रहे थे। वे लड़ते थे अपनी प्रतिष्ठा के लिए, अपनी भूमि के लिए, अपनी जाति के लिए। वे अपने राजा को प्यार करते थे। राजा उनका स्वामी नहीं, मित्र था, इससे राजा के लिए प्राण तक देना उनके लिए परम आनन्द की बात थी।

लूनी नदी की क्षीण धारा टेढ़ी-तिरछी होकर उन ऊबड़-खाबड़ मैदानों से होती हुई अरावली की उपत्यका में घुस गई थी। उसका जल थोड़ा अवश्य था, परंतु बहुत स्वच्छ और मीठा था। नदी के उत्तर की ओर सीधा पहाड़ खड़ा था, और बड़ा घना जंगल था। उस जंगल में भीलों की बस्तियां थीं। भीलों की जीविका