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मास्टर साहब
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चाहती। ऐसी हालत में आप उससे जबरदस्ती नहीं मिल सकते।'

'ज़बरदस्ती नहीं, श्रीमतीजी, मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूं।'

'आप नाहक हमारा सिर खाते हैं।'

'लेकिन उसने उचित नहीं किया है, उसे सोचना होगा और आपको भी उसे समझाना चाहिए। सोचिए तो सही, वह एक पति की पत्नी ही नहीं, एक बच्ची की मां भी है।'

'वह अपना हानि-लाभ सोच सकती है, उसे आपकी शिक्षा की आवश्यकता नहीं।'

'है, श्रीमतीजी है, उसे मेरी शिक्षा की सहायता की बहुत जरूरत है। वह अपना हानि-लाभ नहीं सोच सकती।'

'तो आप चाहते क्या हैं?'

'जरा उसे यहां बुलाइए, मैं उससे बात करना चाहता हूं।'

'परन्तु मैंने कहा, वह आपसे बात करना नहीं चाहती।'

'नहीं, नहीं, बात करने में हानि नहीं है।'

'ओफ, आपने तो सिर खा डाला। मैं कहती हूं, आप चले जाइए।'

'मैं उसे ले जाने के लिए आया हूं।'

'उसे आप जबरदस्ती नहीं ले जा सकते।'

'मैं उसे समझाना चाहता हूं।'

'वह आपसे मिलने को तैयार नहीं।'

'मैं उसका पति हूं श्रीमतीजी, वह मेरी पत्नी है, मेरा उसपर पूरा अधिकार है।

'तो आप अदालत में जाइए, अपने अधिकार का दावा कीजिए।'

'छी, छी! श्रीमतीजी, आप महिलाओं की हितैषिणी हैं,आप यह कभी पसन्द नहीं करेंगी।

'जी, मैं यह भी तो पसन्द नहीं करती कि पुरुष स्त्रियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध अपनी आवश्यकताओं का गुलाम बनाएं।'

'कहां, हम तो उन्हें अपने घर-बार की मालकिन बनाकर, अपनी इज्जत, प्रतिष्ठा, सब-कुछ उन्हें सौंपकर निश्चिन्त रहते हैं। जो कमाते हैं, उन्हीं के हाथ पर धरते हैं, फिर प्रत्येक वस्तु और कार्य के लिए उन्हींकी सहायता के भिखारी