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आंके-बांके राजपूत
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ऊदा बोला--आज ही रात को जाऊंगा।

घर आकर उसने अपनी काठण घोड़ी को उड़दाना (गुड़-पाटा मिलाकर) दिया। तब उसके भाई सिखरा ने पूछा-आज घोड़ी को उड़दाना क्यों देता है?

उसने कहा-भादराजण जाऊंगा।

सिखरा उसका बड़ा भाई था। उसने कहा-जहां ऐसा वैर है कि पग-पग पर आदमी मारे जाते हैं, तू वहां क्यों जाता है ?-ऊदा ने उसे कसम खिलाकर कहा कि मुझे मत रोके।

सांझ होते ही ऊदा चल खड़ा हुआ और आधी रात को ससुराल जा पहुंचा। सुसराल का द्वार खुलवाकर भीतर गया। सरगरे (डोम) ने जाकर ईदणदे (ऊदा की स्त्री) को जगाया। ढोलिया बिछा दिया। ऊदा थका था, उसे नींद आ गई। वह अपनी घोड़ी का कायजा खोलकर उसे बांधना भूल गया था। वह कसी-कसाई बाहर खड़ी थी। इतने में ऊदा का साला जग गया। उसने घोड़ी देखी। वह पहचान गया-ऊदा की है। वह उसे लेकर पायगाह में बांधने चला।

इसी समय ऊदा की आंख खुली। उसने समझा कोई चोर घोड़ी को लिए जा रहा है। भादराजण में चोर बहुत रहते थे। यह समझकर वह लपका और ननवार का एक हाथ खींचकर मारा। साले के दो टुकड़े हो गए। आहट पाकर ऊदा की स्त्री भी आ गई। उसने देखा-भाई मारा गया। उसने कहा- यह तुमने क्या किया?

इसी समय ऊदा की सास भी आ गई। उसने सारी हकीकत सुनकर कहाजो होना था, वह हुआ। अब यह दूसरा बैर बढ़ा। अच्छा यही है कि अब तुम चुपचाप यहां से चले जायो। ऊदा ने सब बातों पर विचार किया, सास को प्रणाम किया। एक नज़र पत्नी पर डाली और घोड़ी पर सवार हो गया। अंधेरे में गायत्र हो गया।

इस बार सब श्रोतागण सन्नाटे में बैठे रहे। सबके चेहरे पर चिता और उन कता व्याप्त हो गई। एक ने सहमते-सहमते कहा-उन्होंने उसका पीछा किया? उसे मार डाला?

परन्तु चारण भाव-धारा में डूबे हुए थे। उन्होंने प्रश्नकर्ता की बात सुनी ही नहीं। उन्होंने कहानी आगे बढ़ाई:

भादराजण के पास ही एक गांव में मेला-सेपटा राजपूत रहता था। वह