पृष्ठ:कहानी खत्म हो गई.djvu/४८

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बड़नककी
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देखा। एक भीमकाय, बलिष्ठ अधेड़ पुरुष सामने खड़ा है। खून के समान नेत्र जल रहे हैं। धनी काली दाढ़ी के भीतर कुटिल प्रोष्ठ स्तब्ध दांतों से चिपक रहे हैं। भय से वसन्ती की चीख निकल गई। वह उठ खड़ी हुई और दीवार से चिपक गई।

आगन्तुक ने आगे बढ़कर कहा-डरो मत, मैं तुमसे प्रेम करने आया हूं, तकलीफ देने नहीं। बैठ जाओ, शराब की बोतल और गिलास आ रहे होंगे, मैं नीचे तुम्हारी लायक अम्मा से कह आया हूं। वह सितार उठा लो, एकाध गत बजाओ, एकाध चीज़ इस सुरीले गले से गाओ। मैं कुछ देर यहां तफरीह करूंगा, क्योंकि आज मेरी तबियत नासान है। तुम्हारी अम्माजान ने मेरे साथ सलूक तो बुरा किया है, मगर उसका बदला उसीको दिया जाएगा। तुमको नहीं। तुम्हारा जैसा सलूक मेरे साथ होगा, वैसा मेरा तुम्हारे साथ होगा। उसे भी मैं माफ कर दूंगा क्योंकि उसने आध घण्टे में वादा पूरा करने को कहा है। आध घण्टा मैं तुम्हारी सोहबत में सर्फ करूंगा। तुम्हारे गाने-बजाने और रूप की तारीफ वह साला बनिये का बच्चा करता था, जिसे मैंने कल हलाल कर दिया है। देखता हूं, देखने में बुरी नहीं हो।

इतना कहकर वह दुर्दान्त डाकू एकाकी वसन्ती के सिर पर आ खड़ा हुआ और उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अधर उठा लिया। इसके बाद धीरे से फर्श पर रखकर खिलखिलाकर कहने लगा-खुदा की कसम, तुम फूल के बराबर हलकी हो, नाजुकी तुम पर खत्म है, ओह! तुम वाकई एक प्यारी चीज़ हो। लो यह कबूल फरमानो।

इतना कहकर उसने जेब से मुट्ठी-भर अशर्फियाँ उसके ऊपर उड़ेल दीं। वसंती को होश न था। मानो किसी विषधर काल सर्प ने उसे जकड़ लिया हो। वह बेंत की तरह कांपने लगी। उसके होंठ नीले पड़ गए। उसने अशर्फियाँ छुईं भी नहीं, वह कुछ बोली भी नहीं।

डाकू बैठ गया और घूर-घूरकर उसे देखने लगा। वसन्ती का भय कूछ कम हुआ। वह साहस बटोरकर बोली-मेरी तबियत इस वक्त खराब हो गई है, अगर आप मुझे माफ कर दें तो बड़ा अहसान हो। वैसे मैं भी इस वक्त हुजूर की खिदमत के लायक नहीं।

'बेवकूफ, तू सिर्फ मुझसे डर गई है। मगर मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि तेरे साथ कोई बुरा सलूक नहीं किया जाएगा। तुम्हारा फर्ज है तुम मुझे खुश करो।