जाएंगी।
बुढ़िया ने मेरे आदेश का अक्षरशः पालन किया। पण्डितजी सन्नाटे में आकर मेरा मुंह ताक रहे थे । थोड़ी देर के बाद बोले-अगले स्टेशन पर गाड़ी खड़ी हो तो हम लोगों को दूसरे डिब्बे में चले जाना चाहिए। इस स्त्री का मस्तिष्क कुछ विकृत मालूम पड़ता है।सम्भव है, कोई उत्पात कर बैठे।
मैंने पण्डितजी की बातों का कोई उत्तर नहीं दिया। मन में विचित्र प्रकार की भाव-तरंगें उठ रही थीं। हिन्दू-समाज पर रमणी ने जो आक्षेप किए थे, वे मानो कानों में गूंज रहे थे। मैं अपनी सामाजिक अवस्था पर विचार करने लगा। मेरी दृढ़ धारणा हो गई कि यह रमणी समाज की सताई हुई है। किसी सामाजिक रूढ़ि ने ही इसे वेश्या--जीवन व्यतीत करने के लिए विवश किया है। यह कैसे वेश्या बनी, पहले कौन थी, यह जानने के लिए मैं उत्सुक होने लगा। गाड़ी वेतहाशा भागी जा रही थी और मेरे मन-महाराज भी अपने खयाली घोड़ों पर चढ़े सरपट दौड़ रहे थे । अगला स्टेशन पाया और निकल भी गया।
एक घण्टा योंही गुज़र गया। रमणी फिर उठ बैठी। उसके चेहरे पर स्वाभाविक शान्ति विराज रही थी। भीषण तूफान के बाद मानो प्रकृति ने निस्तब्ध भाव धारण कर लिया हो। मैंने उससे पूछा--कहिए, आपकी तबियत अब कैसी है ?
उसने मुस्कराकर उत्तर दिया--मैं बीमार थोड़े ही हूं। मैं एक अत्याचार-पीड़िता स्त्री हूं। मेरी पवित्र भावना निर्दयतापूर्वक कुचल डाली गई है। मेरा हृदय पका फोड़ा बन गया है, इसीसे ज़रा भी ठेस लगते ही वह फूट पड़ता है।
मैंने संकुचित भाव से कहा--मुझे क्षमा कीजिएगा। आपका परिचय जानने के लिए मेरा मन बहुत उत्सुक हो रहा है। अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो
उसने बीच में ही बात काटकर कहा--मैं एक साधारण वेश्या हूं। बस यही मेरा परिचय है।
मैंने कहा--परिचय से मेरा मतलब आपके वर्तमान जीवन से पूर्व की कथा से था। परन्तु मैं आपको इसके लिए विशेष कष्ट नहीं देना चाहता।
थोड़ी देर तक चुप रहने के बाद उसने कहा-मेरी राम-कहानी सुनना चाहते हैं ? अच्छा ठहरिए, ज़रा हाथ-मुंह धोकर खा लूं तो सुनाती हूं। परन्तु मेरी पापपूर्ण राम--कहानी में कोई रोचकता न होगी।