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भाई की बिदाई
 

उसकी मूंछे और आंसू से छलछलाती हुई बड़ी-बड़ी आंखें, अनुनय के लिए फड़-कते हुए होंठ, यह देखकर बालिका स्तम्भित रह गई। उसने रोना चाहा पर रो न सकी। क्रोध करना चाहा पर क्रोध भी न कर सकी। उसने नायक की ओर से मुंह फेर लिया । नायक धरती में लेट गया-उसने बालिका के पैर छूने के लिए हाथ बढ़ाया। बालिका का भय बहुत कुछ दूर हो गया था। उसने कुछ क्रुद्ध और कुछ दुःख-भरे स्वर में कहा :

'ऐसे भले हो तो यह काम क्यों करते हो ?' बालिका के होंठ कांपने लगे।

युवक ने कहा--बहिन, यह सब इस अभागे देश के लिए, जिसके लिए हमने प्राण और शरीर दे दिया है। इस धन का खरीदा हुआ अन्न का एक दाना भी हमारे लिए गोमांस के समान है, हम निरुपाय होकर ही यह सब करते हैं।

'फिर इसे क्यों मार डाला?'

'इस पापी का अपराध इससे भी अधिक था। यह दण्ड पाकर भी यह अभी पाप से उन्मुक्त नहीं हुआ-जब तक तुम क्षमा न करो। इसने हमारे दल को छिन्न-भिन्न कर दिया। पृथ्वी-भर की स्त्रियां हमारी बहिनें हैं। यह तो हमारा व्रत है--युवक नायक का सुन्दर मुख लाल हो गया। उसके चारों ओर उज्ज्वल आभा फैल गई। उसने टपाटप.प्रांसू गिराते हुए कहा-बहिन, इस पापी को क्षमा कर दो ! वरना मैं स्वयं को गोली मार लूंगा। उसने पिस्तौल उठाकर अपने सिर में लगा ली।

बालिका दौड़ी, उसने पिस्तौल युवक से छीन ली। फिर क्षण-भर चुप खड़ी रही। इसके बाद उसने भरीए स्वर में कहा-खड़े हो जायो । जमीन में क्यों पड़े हो?

युवक ने कहा--मेरे साथी को जब तक तुम क्षमा न करोगी, खड़ा न हूंगा। या तो क्षमा करो या मुझे गोली मारो, पिस्तौल तुम्हारे हाथ में है। उसमें अभी लचार गोलियां हैं। निशाना साधने की ज़रूरत नहीं। मेरी खोपड़ी में लगाकर घोड़ा दबा दो।

युवक नायक की आंखें सूख गईं। उसके स्वर में तीखापन भी था। बालिका आगे बढ़ी, उसने युवक का हाथ पकड़ लिया और कहा :

'उठो-उठो।'

'तब क्षमा किया?"