पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बाबू लालमोहनघोष। सएव धन्यो विपदि, स्वरुप यो न मुञ्चति । त्यजत्यर्क करैस्तप्तं, हिमं देदं न शान्तिताम् । * श्वर प्राप्ति के निमित्त, जिस प्रकार मनुष्य को स्वार्थ का त्याग करना पड़ता है उसी प्रकार राष्ट्रहित साधन के लिए भी मनुष्य को बड़े बड़े सङ्कट भोगना पड़ते हैं। कभी याभी तो भरने तक की नीयत पहुंच जाती है। स्वदेश हित चिन्त- गन करने वालों को क्या क्या और किस प्रकार मङ्कट प्रा कर घेर लेते हैं इस को वे ही लोग खूब अच्छी तरह जान सकते हैं जो व्रत में प्रती हो कर संसार मुख की कामना को परित्याग करके अपने व्रत के उद्या. पन में अपने जीवन को लगाते हैं। जिस प्रकार ईश्वर प्राप्ति के निमित्त जो क्लेश सहन करना पड़ते हैं उन्हें योगियों के अतिरिक्त सर्व- साधारण लोग नहीं जानते उसी प्रकार राष्ट्र हित साधन करने वालों को क्या क्या कष्ट भोगना पड़ते हैं उसे सब लोग नहीं जान सकते। ऐसे महान् पुरुप संसार में बहुत ही कम पैदा होते हैं बाबू लालमोहन घोप ने अपना सारा जीवन देश हित के काम में लगा दिया जिसका संक्षेप हाल हम नीचे देते हैं। यायू लालमोहनघोप का जन्म सन् १८४९ में, कृष्ण नगर में हुआ। श्राप का जन्म बंगाल के उच्च कुल कायस्थ घोप घराने में हुआ है। घोष घराना 'घंगाल में बहुत ही प्राचीन इतिहास प्रसिद्ध है । घोप यह पहले बुला- दिया में रहते थे परन्तु वहां से उठकर ढाका के पास बैरगढ़ी में जाकर

  • वही पुरुप धन्य है जो विपत्ति के समय भी अपना स्वरूप नहीं

खोड़ता । सूर्य की किरणों से यरफ़ पिघल कर पानी हो जाता है परन्तु अपनी शीतलता नहीं छोड़ता ।