ही स्वावलम्ब का कारण है। ये सय यात प्रापके जीवन चरित से स्पष्ट प्रगट होती हैं। आपका जन्म सन् १८६६ में, एक निर्धन ब्राह्मण के यहां, दक्षिण प्रान्त के कोल्हापुर नगर में हुमा। आपके भाग्य में पितृ मुख भोग बहुत दिनों तक बदा न था। आपके पैदा होने के घोड़े ही दिनों बाद आपने पिता का देहान्त हो गया। इन के एक भाई और हैं । वे प्राप से बड़े हैं । पिता के मरने पश्चात् उन्हीं के सर पर गृहस्थी का सारा बोझ पष्ठ गया। घर के सब लोगों का पालन पोपण करना और इन्हें पढ़ाने लिखाने का भार उन्हीं पर था। आपने प्रारम्भ में शिक्षा कोल्हा. पुर के एक स्कूल में पाई। यहां अपनी शिक्षा समाप्त करके उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए आप बम्बई गए। यहां जाकर एलफिन्सटन कालिज में, आपने पढ़ना आरम्भ किपा। वहां नापने वी० ए० की परीक्षा पास की। यी० ए० पास होने पश्चात् आपकी इच्छा इंजिनियरिंग कालिज में पढ़ने ककी हुई। परन्तु बी० ए० की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण न होने के कारण आप स्वफल मनोरथ न हो सके । अच्छा ही हुआ । यदि आप इंजिनियर कालिज में भरती होकर उसकी उच्च परीक्षा को पास करके इंजिनियर बन जाते तो आपको आर्थिक लाभ अवश्य होता परन्तु उस दशा में आपके द्वारा देश को लाभ पहुंचने की कम सम्भावना थी। उस कार्य में प्रवेश होने से आप राजनैतिक देश हित कार्य को कभी न कर मकते। इसी लिए हम कहते हैं कि भव्हाहुना कि प्राप इंजिनियरिंग फालिज में भरती न हो सके। उधर से निराश होकर, झाप पूना भाकर न्यू इंग्लिश स्कूल में शिक्षक नियत हुए। उस समय आप की उमर फरीय १८ वर्ष के थी। यही न्यू इंग्लिश स्कूल प्रब फग्र्युसन कालिन के नाम से प्रसिद्ध है । इस स्कूल को अपने उद्योग, परिश्रम और प्रात्मत्याग द्वारा कालिज बनाने वाले चिपलनकर, नामजोशी, आगरकर, और तिलक महोदय हैं। यह कालिज महाराष्ट्र देश के प्रधान गौरय शाली विद्वानों के निरन्तर परिश्रम और साहस द्वारा बहुत ही उत्तम रीति से चल रहा है । अति सामान्य एक छोटे से स्कूल से बढ़ कर यह कालिज - प्रापटे
पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१२२
दिखावट