डाफर राशयिहारी घोष । १९५ असार संसार को त्याग कर स्वर्गवास करने के लिए चल बसे । माननीय द्वारका नाथ मित्र का सहारा न रहने से आपकी भी वकालत अन्य नवीन वकीलों की तरह सामान्य रूप से चलने लगी। उन दिनों आप को बहुत समय मिलता था । परन्तु आप अपना समय व्यर्थ की बातें करने, टेनिस प्रथवा गेंदघल्ला खेलने, इत्यादि धातों में नष्ट नहीं करते थे। भाप अपना सारा समय कानून का अध्ययन करने में व्यतीत करते थे। आपने कानून का अध्ययन और मनन शास्त्रोक्त रीति से किया। कानून के मूल तत्वों पर भी प्रापने खूब ही विचार किया । फ़ानून का मनन करते समय आपने हिन्दू और मुसलमानी धर्मशास्त्र का ही अध्ययन नहीं किया यरन्-अंगरेज़ी, यूरोपियन और अमेरिकन फानून का भी शान पूर्ण रूप से प्रापने प्राप्त किया। एक देश के फ़ानून को दूसरे देश के फ़ानून से तुलना करने में प्राप यहुत निपुण हैं। भारत, यूरोप और अमेरिका की अदालतों के फैसलों को भी आपने ध्यान से पढ़ा । इंग्लैंड के कानून की भी सूध ही बारीक बारीफ यातों पर आपने विचार किया। इस प्रकार चार वर्ष निरन्तर परिश्रम करके सन् १८७१ में, भानर्स इन ला' को सर्वोच्च फ़ानूनी परीक्षा को मापने पास किया । . इस परीक्षा को पास कर लेने पश्चात आप चार वर्ष तक 'टागोर ला लेफचरर' का काम करते रहे । 'भारत में रहन का कानून (The law of Mortgages in India) यह विषय बहुत ही कठिन है। । परन्तु इस विषय पर आपने यारह लेकघर दिए । ये व्याख्यान बहुत ही शीघ्र पुस्तकाकार छपकर प्रकाशित हुए। इन व्याख्यानों का प्रचार होने से डाकृर घोष के अध्ययन, विवेचन, कानूनी तत्वों का ऐतिहासिक पद्धति से विचार करने की शक्ति, फ़ानून के अनेक तत्वों की तुलना करने का विलक्षण शान, इत्यादि महत्व की बातों का परिचय लोगों को प्राप्त हुआ। उस समय इस पुस्तक की चारों ओर इतनी अधिक प्रशंसा हुई कि छोटे से लेकर बड़े तक सब वकीलों ने उसे मँगाकर पड़ा । सन् १८८२ में, 'ट्रान्सफर प्राफ प्रापरटी एकृ' तय्यार करने के समय इस पुस्तक से बहुत कुछ मदद ली गई । इस बात को उस एक को
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