पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१३५

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डाकर रायण्हिारी घोप। १९७ 1 महाराजानों की प्रतिष्ठा और मान की कुछ भी परवाह न कर के उनकी सूप ही विडम्बना की। यहां तक कि अन्त में कलकत्ता विश्वविद्यालय के परीक्षोत्तीर्ण विद्यार्थियों को पदवी दान के समारम्भ में, जो मापने वक्तताः दी पी उस में इस देशयासियों के प्रति-नहीं वरन् । सारे एशियावासियों के प्रति-कटु और असत्य शब्दों को कह कर लोगों : के क्रोध और घृणा को खूब ही बढ़ा दिया । लाई महोदय के व्याख्यान ' से.व्यथित होकर बंगालियों ने कलकत्ते में एक सभा की । इस सभा के सभापति का प्रासन हाकृर घोष ने ग्रहण किया । जो पुरुप आठ वर्ष तक बराबर साहित्य अध्ययन और अपनी जीविका निर्वाह करने के । अतिरिक्त, संसारी झगड़ों में नहीं पड़ा; उसमें भी लार्ड कर्जन के घृणित कार्य से नवीन स्फुर्ति भागई और एक दम आगे आकर कार्य करने में : तत्पर हो गया। लोगों ने भी उसे अपना नेता बनाना स्वीकार किया। जिस प्रकार कोई ऋषि मुनि किसी पहाड़ की खोह में बैठा तपस्या : करता हो और अपने देश पर संकट आया हुआ जान तुरन्त 'श्राफर' उस संकट को -निवारण फरे' उसी प्रकार हाकर घोष ने एक दम अपनी तटस्थ वृत्ति को त्याग कर, भारत माता पर भाए हुए अनिष्ट ग्रहों का निवारण करने और देशसेवा - करने के अभिप्राय से अपने मौन व्रत.का भंग किया। इस समय के पश्चात डाकृर घोष ने जो कुछ देश सेवा की है वह किसी पर छिपी नहीं है। राजविद्रोही सभाओं के बन्द" करने का बिल गत : नवम्बर मास में शिमले के लाट भवन में, पास होने के लिए उपस्थित किया गया था उस समय आपने भी माननीय गोखले के समान ही निर्भय होकर गवर्मेट के इस अन्याय कार्य की;

निन्दा की थी।

वर्ष सन् १९०७ के दिसम्बर मास में, जब कांग्रेस का अधिवेशन : सूरत में हुआ था तब भाप उसके सभापति चुने गए । सूरत में; दला दली के कारण, कांग्रेस का कार्य निर्विघ्न समाप्त न हो सका और न माप को अपनी पूरी वक्तृता पढ़ने का अवसर मिला परन्तु तो भी आपकी : वक्तृता जो मामयिक समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थी उसमे जाना . गत