( ४ ) को इस की सत्यता का परिचय कराना चाहते हैं । सितम्बर १९०५ की सरस्वती में, सरस्वती सम्पादक, पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने, एक नोट दिया है कि हिन्दी बंगवासी के मालिक बाबू योगेन्द्र चन्द्र बसु का शरीर पात हो गया। उन्होंने हिन्दी की अच्छी सेवा की थी । अतएव कृतज्ञता प्रगट करने के लिए उनका चित्र सरखती में प्रकाशित किया जाय इस हेतु से. उनके चित्र के लिए वंगवासी प्रेस को दो पत्र लिखे गए परन्तु चित्र तो भेजना दर किनार, पत्रों का उत्तर तक नहीं मिला ! जय चित्र मिलने में इतनी कठिनाई तब चरित्र का मिलना तो बहुत ही कठिन है। यही नापत्ति हमें भी भोगना पड़ी। जय कहीं से किसी प्रकार की हमें आशा न दिखाई पड़ी तब हमने पुस्तकों का संग्रह करना प्रारम्भ किया। इस प्रकार हमें बहुत कुछ सफलता प्राप्त हुई । २३ साल में कुल १९ सभापति हुए। अर्थात् दादाभाई नौरोजी तीन बार, बाघू उमेशचन्द्र बनर्जी, और बायू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी-दो दो बार सभापति हुए। इन १८ में से १६ चरित यही कठिनाई से हमें प्राप्त हुए। बाकी ३-जार्जयूल, वेडरयरन, और एलफर्ड वेब के चरित किसी प्रकार से नहीं प्राप्त हो सके। अतएव इतने ही पर हमें सन्तोष करना पड़ा। इन लोगों के अलावा दो और कांग्रेस हितैपियों के चरित इसमें जोड़ दिए गए हैं। वे दोनों सज्जन कांग्रेस के कभी सभापति नहीं हुए परन्तु कांग्रेस की बुनियाद हालने वाले वे ही हैं। अर्थात मिस्टर ए० श्रो० ह्यूम और पण्डित अयोध्यानाथ । मिस्टर ह्यून कांग्रेस के जन्मदाता हैं और पगिहत अयोध्यानाथ उसके पोषक थे। इन दोनों ने कांग्रेस की जितनी सेवा की वह किसी पर छिपी नहीं है । वे कांग्रेस के सभापति नहीं हुए परन्तु वे कांग्रेस की जान थे। यही सोच कर हमने परिशिष्ट में इनके चरित दे दिए हैं। एम पुस्तक को लिखने में हमें श्रीयुत परिहत माधवराव सप्रे बी० ए० ने बहुत कुछ उत्तेजना और उत्साह दिलाया। नापने सर हेनरी काटन का परित भी लिख कर भेला । अतएव हम आपके बहुत -
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