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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१३

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विचारों का फैलना अथवा फैलाना है। परन्तु विचार किस तरह सकते हैं अथवा फैलाए जा सकते हैं; केवल मातृ भाषा द्वारा । परन्तु देश के दुर्भाग्य से कहो अथवा किसी अन्य कारण से; यहां हर एक प्रान्त में अलग अलग भाषाएं व्यवहार में लाई जाती हैं । हां, बाबू गुरुदास- बनर्जी, जस्टिस शारदा घरण मित्र, मिस्टर भावे सरीखे विद्वान लोगों ने इस ओर ध्यान दिया है । सम्भव है कि कुछ समय पाकर देश की एक राष्ट्रभाषा हो जाय । परन्तु यदि कोई राष्ट्रभाषा इस देशमें हो सकती है तो यह हिन्दी ही है । हां, यह सम्भव है कि हिन्दी के वर्तमान स्वरूप में किसी प्रकार का भेद भाव पड़ जाय परन्तु राष्ट्र भाषा हिन्दी और राष्ट्र अक्षर देवनागरी ही होंगे । इसी कारण हमने, हर एक प्रान्त के लोगों के चरित, जो हमारी राष्ट्रीय सभा के सभापति हुए हिन्दी में लिखे हैं। इस महा- सभामें हिन्दू मुसलमान और क्रिश्चियन सय जाति के लोग शामिल हैं। और सयों की मनोकामना देश की उन्नति करना ही है। जो लोग हिन्दी जानते हैं वे राष्ट्रीय विचारों को इस पुस्तक द्वारा जान सकेंगे। जो लोग हिन्दी नहीं जानते थे राष्ट्रीय भाषा समझ राष्ट्र मणियों के चरित पढ़कर लाभ उठा सकेंगे। यदि इस पुस्तक से हमारा यह उद्देश्य पूरा होगा तो हम अपने परिश्रम को मुफल के सुफल हुआ समझेंगे।
इस पुस्तक को लिखने से पहले हमने इसके लिखने के लिए सामिग्री एकत्रित करना प्रारम्भ किया । क्योंकि बहुत से सभापतियों के नाम तक हम को मालूम न थे। कांग्रेस के कई एक बड़े बड़े भक्तों को हमने पत्र लिखे । कई एक मभापतियों को भी हमने अपने उद्देश्य की सूचना देकर उनसे सहायता करने की विनय की । परन्तु सहायता देना तो दूर रहा लोगों ने जवाब तक नहीं दिए । इस देश में साहित्य का काम करने वालों को फितना उत्साह और सहायता मिलती है यह बात इस · से अच्छी तरह नंगट है । अगर हमारी यात 'सच न मानी जाय, तो हम इस यात को साबित करने के लिए एक छोटी सी मिसाल देकरं पाठकों