१२२ कांग्रेस--चरितायगी। फूदना ही आपको अधिक प्रिय.था। यह दशा देख कर आपके बड़े भाई ने एक दिन क्रोध युक्त होकर कहा कि "तुम प्रयय खेलो, कूदो, तुम्न लिख पढ़ नहीं सकते। अपने भाई के मोध-युक्त भाषण को सुन कर प्रानन्द यायू ने तुरन्त उत्तर दिया कि "हम अवश्य पढ़ सकते हैं; देखना माज से हम कैसा पढ़ते हैं।" उसी दिन से प्रानन्द मोहन बोस ने पढ़ने लिखने में लय ही चित्त लगाया। बालक नानन्द मोहन ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दिखलाई । ९ वर्ष की अवस्था में ही प्रापने जिला की छात्र- पत्ति परीक्षामें; सब यालकों से उच्च स्थान पाया-माप भव्यल नम्बर पास हुए। इसके बाद आप अंगरेजी पढ़ने के लिए जिला स्कूल में भर्ती हुए। यहां भी आप अपने परीक्षकों को अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया । एक एक वर्ष में आपने दो दो दो की परीक्षा देकर उनमें प्रथम नम्बर पाया । सन् १८६२ में, आपने कलकत्ता विश्वविद्यालय के इन्ट्रेन्स की परीक्षा दी। इन्ट्रन्स की परीक्षा देने से पांच मास पहले आपके पिता को देहान्त हो गया, इस कारण कई मास तक आपको अपने घर पर जा कर रहना पड़ा। अध्ययन का कार्य कई मास तक रुका रहा। परन्तु अनध्यपन होने पर भी भापका सारे बङ्गाल में दसवां नम्बर रहा श्रीर ७) मासिक गवर्मेंट स्कालरशिप (वज़ीफ़ा) पाया। यदि आपका पार पांच मास अनध्ययन न होता तो श्राप अवश्य सारे वङ्गाल में प्रथग रहते। इस बात का परिचय सापके एफ़ एक परीक्षा से मिलता है। इन्ट्रन्स पास होने बाद आप कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कालिज में जाकर पढ़ने लगे। सन् १८६४ में, आपने एफ० ए० की परीक्षा दी । इस परीक्षा में प्राप सारे बङ्गाल में अव्वल रहे । बी० ए० और एम०ए० की परीक्षा में भी कलकत्ता विश्वविद्यलय में, आप प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। परन्तु इतने ही से आपकी अपूर्व प्रतिभा का पूर्ण परिचय नहीं मिलता। बहुत से और विद्यार्थियों ने भी विश्वविद्यालय को उच्च परीक्षाओं में अखल नम्बर पाया है-वे भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो चुके हैं। परन्तु प्रानन्द मोहन योस में और भी विशेषता थी। बी० ए० को परीक्षा में प्रापने गणित के परचे में इतने अधिक नम्बर पाए कि परीक्षक भी देख कर विश्मित
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