.. बाब उमेशचन्द्र बनर्जी। BDPng छ उमेशचन्द्र धनर्जी की सब लोग जिस नाम से पहचानते और सम्बोधन करते हैं वह डब्लू० सी० बनर्जी है। उन- बा का चरित लिखने के पहले हम ने उनके नाम का ठीक ठीक परिचय इस कारण करा दिया कि पाठकों को किसी दूसरे पुरुष का धोखा न हो जाय । डब्लू० सी० बनर्जी के बचपन का हाल जान कर लोग यह अवश्य कहने लगेंगे कि “होनहार बिरवान के होत चीकने पात" यह कहावत सर्वथा सत्य ही है। इन्होंने अपनी बाल्यावस्था में लिखने पढ़ने और विद्याभ्यास की ओर बिलकुल ध्यान नहीं दिया । हमेशा खेल कूद में ही वे अपना अधिक समय व्यतीत करते थे। उन्हें नाटक का बहुत बड़ा शौफ़ था। वे नाटकों के खेल स्वयं देखते , और लोगों को करके दिखाते भी थे । कलकत्ते में महाराजा ज्योतीन्द्र मोहन टागोर नामके एक प्रतिष्ठित पुरुप हैं, उन का बनवाया हुमा यहां एक टागोर नाटक गृह है । उमेश वायू यहुधा उसमें जाकर फभी स्त्री और कभी पुरुष का स्वांग लेते थे। इसी कारण महाराजा साहब उन पर प्रसन्न रहते थे। परन्तु थोड़े दिनों में ही उमेश चन्द्र ने अपने अन्य प्रकार के कार्यों से सब लोगों को चकित करके यह सिद्ध कर दिखाया कि मनुष्य जब से अच्छा काम करने लगता है सभी से यह यहा होजाता है। उमेश चन्द्र का जन्म, कलकत्ते के पास खिदर पुर नाम के एक स्थान में, २९ दिसम्बर सन् १८४४ को हुना । उनके पिता धायू गिरीश चन्द्र एक प्रतिष्ठित और कुलीन ब्राह्मया थे। वे उस समय कलकत्ते में, अटर्नी का काम करते थे। उमेश चन्द्र की माता भी एफ प्रतिष्ठित घराने की थीं। पहले ही पहल उमेश चन्द्र कलकत्ते के एक मदरसे में पढ़ने को बैठाले गए । परन्तु उन्हों ने वहां पढ़ने लिखने में जी बिलकुल नहीं लगाया।
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