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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/२०

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कांग्रेस-धरितावली। अव इस के बाद, ओरिएंटल और हिन्दू स्कूल में भी इन्हों ने शिक्षा पाई और वहां जैसे तैसे करके आपने इन्ट्रेस की परीक्षा दी। जुलाई सन् १८६१ में, वे घर से रानीगंज की ओर भाग गए। उस समय इनकी उमर करीव १७ वर्ष के थी। उन की तलाश करके उन्हें घर पर वापस लाने के लिए उनके पिता को बड़ा कष्ट उठाना पड़ा । अन्त में गिरीश बाबू ने यह निश्चय किया कि अय यह लड़का अधिक विद्यो- पार्जन नहीं कर सकता, अतएव इसे किसी न किसी काम में लगा देना चाहिए । इसी विचार से उन्होंने उनेश चन्द्र को मिस्टर हौनिङ्ग नामक एक अटर्नी के पास बतौर क्लार्क के नौकर करा दिया। नौकर होजाने के कुछ दिन बाद, उमेश चन्द्र को होश आया; और अपने पिछले काँ के लिये वे पश्चात्ताप करने लगे। परन्तु अव पश्चात्ताप और अफसोस करने से क्या हो सकता है। समय निकल जाने पर पछताने से कुछ नहीं होता । यह समझ कर उमेश चन्द्र ने यह निश्चय किया कि, आगे 'क्या करना चाहिये जिससे हमारी उन्नति हो। उन्होंने बहुत कुछ सोच विचार के बाद, कानून का पढ़ना निश्चय किया। उनकी बुद्धि स्वभावतः अच्छी थी। यद्यपि वे पढ़ने लिखने में जी नहीं लगाते थे तथापि जब से उन्हें होश आया तब से उन्होंने खूय जी खगर कर अभ्यास किया । जव उन्हें कुछ पढ़ने की रुचि हुई तब साथ ही साथ लिखने की नोर भी उन्होंने अच्छा ध्यान दिया । जिसका फल यह हुआ कि सन् १८६२ ईस्वी में "यङ्गाली” पत्रका उनको द्वारा जन्म हुना। मनुष्य के भाग्योदय का जब समय प्राता है तय चारों ओर से उसे सदायता मिलने लगती है। जो काम वह करता वह सफल होता है। उसके काम की लोग कदर करने लगते हैं। यही हाल उमेश चन्द्र का हुश्रा । जय से उन्हों ने लिखने और पढ़ने में जी लगाया तभीसे उनके साथ लोग सहानुभूति दिखाने लगे । सन् १८६४ में बम्यई के प्रसिद्ध पारसी व्यापारी मिस्टर रुस्तमजीजमसेदजीजीजीभाई ने सरकार को तीन लाख रुपये इस लिए दिए कि जो विद्यार्थी विलायत में जाकर फ़ानून को परीक्षा पास करे उसे इस धन से सहायता दी जावे । इन