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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/३०

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१२ कांग्रेस-चरिताथली। व्यारपान उसी समय "जान-प्रमारक मासिक पुस्तक में छप चुके हैं। इसके अतिरिक्त आप ने पारसियों के इतिहास और धर्म पर भी बहुतः से उत्तम २ लेख लिख कर प्रकाशित किए हैं। किसी साधारण मनुष्य को जय एक साथ ही कई एक काम करने पड़ते हैं तब वह घबड़ा जाता है और यही कहने लगता है कि "समय नहीं है। परन्तु इतना ज्यादा काम कर के भी दादाभाई का मन संतुष्ट न था। इन्हीं दिनों में आपने अपना ज्ञान भाण्डार परिपूर्ण करने के लिए लेटिन, फ्रेंच, फारसी, म. राठी और हिन्दोस्थानी भाषामों को बड़े परिश्रम के साथ सीखा। गुजराती भाप की भातृ-भाषा थी । इस कारण अपने स्वदेश बांधवों को जान देने के लिए आप उत्तम उत्तम लेख, गुजराती भाषा के पत्रों में लिखा करते थे। सन् १८५५ से दादाभाई ने व्यापार की ओर ध्यान दिया। उन्होंने सोचा कि, बिना व्यापार की उन्नति किए, देश की उन्नति किसी तरह नहीं हो सकती। उस समय इंग्लेण्ड में, 'कामा कम्पनी' स्थापित हुई थी। इसके पहले विलायत में व्यापार करने के लिए, कोई हिन्दोस्थानी कम्पनी वहां नहीं थी। कई एक पारसी सज्जनों की कृपा से, विलायत में कम्पनी तो स्थापित हो गई, परन्तु सर्व साधारण इस कम्पनी में शामिल होने से डरते थे। सब से पहले दादाभाई नौरोज़ी ने, उस कम्पनी के उद्देशों को समझ कर उसका एक हिस्सा लिया। इससे पहिले उनको व्यापार में कुछ भी अनुभव न था। तथापि बड़े धीरज और साहस से, आप ने वणिक वृत्ति को स्वीकार किया और विलायत यात्रा का निश्चय किया। इससे यद्यपि उनके सुहृज्जनों को दुःख हुआ तथापि दादाभाई के प्रशंसनीय उद्देश्यों को जान कर उन लोगों ने कुछ संतोष माना। - दादाभाई इस · कम्पनी में काम करने के लिए १८५५ में विलायत गए । भारतवर्ष में, थोड़े ही दिन काम करके, श्राप ने बहुत कुछ प्राप्ति की और उस समय आप अपने जाति भाइयों के ही नहीं किन्तु सारे घम्बई प्रान्त के लोगों के प्रिय हो गए थे। श्राप की विलक्षण बुद्धि, विषादपटुता, ज्ञान पूर्ण भाषण और उत्तम व्यवहार के कारण सब लोग आप का आदर और सत्कार करते थे और इसी के अनुसार पीर्ति