दादा भाई नौरोजी दादा भाई का अन्तः कारण खदेशी तथा पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से प्रकाशित हो गया था, इस कारण उनकी यह इच्छा रहती थी कि, अपने ज्ञान का लाभ अपने देशवासियों को मिले; इसी कारण वे उपरोक्त सभाओं का काम अपने कई एक मित्रों की, सहायता से चलाते रहे। उनके मित्रों में से खर्गयासी राव साहय विश्वनाथ नारायण मारहलिफ मुरुय थे। दादाभाई ने अपने मित्रों की सहायता से "रास्त गुस्कार" नाम या एक समाचार पत्र सन् १८५१ में निकाला । इसमें वे यहुत से उत्तम उत्तम लेख लिखते रहे । वे समाज-सुधार की कोई बात इस पत्र में ऐसी नहीं लियते थे जो लोगों को ज्यादा बुरी लगे या उसका परिणाम उल्टा निफले । उस समय के उनके लेखों को पढ़ने से उनकी अद्भुत शक्ति का परिचय पढ़ने वालों को तुरन्त मिल जाता था। देशी भाषा में स्वतंत्र लेख लिखना और दूसरों के प्राचार विचार का सचित आदर करना इस पत्र का मुख्य उद्देश्य था। सब लोगों के हित साधनाथं ऐक्यता प्रवर्तक लेख ही यहुधा इसमें प्रकाशित होते थे। इस प्रकार के प्रगल्भ- विचार होने के कारण, इस पत्र ने उस समय अच्छा नाम पाया। परन्तु श्रय थोड़े दिनों से इस पत्र की दशा बदल गई है। अब वैसे अच्छे लेख और विचार इस पन में नहीं दिखाई देते । प्रचलित राजकीय विषय का विवेचन जैसा दादाभाई के समय में होता था वैसा भय इस पत्र में नहीं होता। यह खेद की यात है। जो मनुष्य अपना एक क्षण भी व्यर्थ नहीं सोता यही इस संसार में बड़े २ काम कर सकता है। दादाभाई के बहुत से धाम एक साथ ' कैसे चलते ये इसका कारण यही है कि वे अपने समय का ठीक ठीक उपयोग करते थे। कालिज में विद्यार्थियों के पढ़ाने का काम और “स्टुडेन्टस लिटरेरी ऐन्ह सायंटिफिक सोसाइटी” में व्याख्यान देने का काम तो ये रोज़ करतेही थे परन्तु कभी कभी ज्ञान-प्रसारक सभा में भी. वे व्याख्यान देते थे। ज्ञान-प्रसारक सभा में भाप ने पदार्थ विज्ञान और ज्योतिप भास्त्र पर १८ सारगर्भित व्याख्यान दिए । भाप के, ये कुल
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