दादा भाई नौरोजी। २१ दादा भाई के मेम्बर होने से भारतवासियों को यहा आनन्द हुआ। भारत के समाचार पत्रों ने बड़ी सुशी के साथ इस सुसमाचार को देश भर में बिजली की तरह शीघ्रता के साथ फैला दिया। ग्लेडस्टन, रिपन, रे, इत्यादि बड़े बड़े अंगरेज़ों को भी यहा हर्प हुआ। दादा भाई ने पारसी मुश में जन्म लेकर भारत की कितनी भलाई की, यह बात सय पर प्रगट है । “यसुधैव कुटुम्यकम्" कहायत आप ने सची करके दिखा दी। अभी प्रापने हाल ही में एक छोटी सी अपनी जीयनी लिख फर प्रकाशित की है। प्त में आप ने लिखा है कि, मुझे जो फुच्च विद्या, मान और यहाई माप्त हुई यह सय मेरी माता की चेष्टा का फल है । आप लिखते हैं कि "सच तो यह है कि श्रम में जो कुछ हूं अपनी माता की बुद्धि और चेष्टा का फल हूं"। आप अपनी माता के फितने कृतत हैं यह यात प्राप के वाक्यों से उत्तम प्रकार से प्रगट होती है। यथार्थ में माताओं की शिक्षा यिना सन्तान का उच्च हृदय होना यही फठिन यात है। सन् १८८३ में, कांग्रेस की ह यी बैठक लाहौर में हुई उसमें आप सय लोगों की सम्मति से फिर कांग्रेस के सभापति नियत हुए। देशवासियों ने दुयारा आप को कांग्रेस का सभापति यना कर इस तरह पर अपनी कृतज्ञता प्रगट की। यही नहीं, वरन् कई यपी से प्राप • के जन्म दिन की खुशी भी मनाई जाती है, इस साल ४ सितम्बर सोमवार के दिन प्राप० वर्ष के पूरे होगये और प्रापने ८१ वें वर्ष में पैर रखा। इसी का प्रानन्द मनाने के लिए यम्बई, मद्रास, कलकत्ता, प्रयाग, लखनक, घनारस, बेलारी इत्यादि स्थानो में सभाएं हुई और विलायत में माप के पास बधाई के तार भेजे गए और आप के दीर्घ जीवन के लिये ईश्वर से मार्थना की गई। बम्बई की सभा में मिस्टर गोखले ने कहा कि "जो लोग अपनी मातृभूमि की भलाई करना चाहते हैं उनको चाहिए कि दादा भाई नौरोजी के पथ का प्रयलम्यन करें।" मिस्टर गोखले के ये शब्द फितने मनोहर और स्मरण रखने योग्य हैं । एक प्रखयार ने आप के बायत्त कैसा अच्छा लिखा है, वह लिखता है कि "दादाभाई, ८० साल
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