२० कांग्रेम-चरितायली। 1 इस प्रकार अपने देश यान्धयों में सन्मान पाफर, दादा भाई फिर विलायत धले गए और यहां लेरा लिए कर और व्याख्यान देकर अपना कर्तव्य पालन करने लगे। शाप के उद्योग को देख कर, फई एक उदार अगरेजों के मन में, भारत-यासियों की दशा पर कुछ दया उत्पन्न हुई और तभी से श्रेष्ठला, डिग्बी, केन, एलिम, कालिन, प्रत्यादि परोपकारी सज्जनों ने इस प्रभागे देश की दशा सुधारने का यीड़ा उठाया। हिग्यो साहब ने 'लन्दन पोलिटिकल एजेन्टी' नाम की एक सभा स्थापित की। जिसके द्वारा ये लोग भारत की गोपनीय दशा का विचार करने लगे। कांग्रेस में जो प्रति वर्ष प्रस्ताव किए जाते थे ये सब इसी सभा द्वारा अंगरेजों फो यताए जाते थे। सन् १८९७ में, याय सुरेन्द्र नाथ यनी, मिस्टर नारायण रावचन्दावर कर और मिस्टर रंगराय मुधोलकर भारत से विलायत गए और वहां इन्होंने दादाभाई की सहायता से कांग्रेस के उद्देश्य और उसके विषय में कई एक और वार्ते अंगरेज़ों को समझाई। भारत की भलाई का इतना उद्योग हो रहा था परन्तु दादा भाई इस से सन्तुष्ट न थे। आप का विचार था कि जब तक भारत की दुर्दशा किसी भारतवासी द्वारा पार्लियामेंट में न सुनाई जायगी तब तक किसी प्रकार की सफलता नहीं हो सकती। आप सदैव यही कहते हैं कि, हमें जो युद्ध करना है उसके लिए पार्लियामेंट ही रणभूमि है। सन् १८९२ में पार्लियामेंट की मेम्बरी या फिर गुनाय हुआ। इस बार आपने अपना नाम सेंट्रल फिसवरी की शोर से उम्मेदवारों में दाखिल कराया । निर्वाचकों को अपने पक्ष में लाने के लिए पापने वहां बहुत से व्याख्यान दिये। भारत के भूतपूर्व लग्ट रिपन और यम्बई के भूतपूर्व गवर्नर लार्ट रे ने इस बार आप की बहुत सहायता की। स्वर्गवासी श्रेष्ठला साहब को कन्या मिसेस ब्रैडलाबानर और विदुषी क्लारेन्स नाइटिङ्गल ने आप के लिए बहुत परिश्रम उठाया। 9 जोलाई सन् १८९२ में भाप पार्लियामेंट के सभासद नियुक्त हुए।
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