राय यहादुर पी० भानन्द पारलू । © - पनकी मृत्यु हुई उस समय भानन्द पारलू केवल १२ वर्ष के थे। पिता के मरने पश्चात् आप के पालन पोषण और शिक्षा आदि का भार भापकी माता पर पहा । अपने लड़के को उत्तम और उच्च शिक्षा प्राप्त होने के उद्देश्य से वे अपना घर छोड़ कर मदरास में जाकर रहने लगी। मदरास में 'पेचापा' नामक एक सज्जन की कृपा से एक स्कूल खुला था उसी स्कूल में मानन्द धारलू महाशय ने “मेट्रिक्यूलेशन" तक शिक्षा पाई। जिस समय आप स्कूल में पढ़ते ये उन्हीं दिनों में आप अपने पिता के मित्र रंगनादम शास्त्री से बराबर जाकर मिलते थे । ये उस समय मदरांस में स्माल काश कोर्ट के जज थे। दक्षिण प्रान्त में जो भाषाएं घोली जाती हैं उनका उन्हें अच्छा ज्ञान था । इस कारण वे मदरास मान्त में अधिक प्रसिद्ध थे। विद्या व्यसन और स्वतंत्र विचारों की अपूर्व सम्पत्ति मानन्द चारलू ने उन्हीं से प्राप्त की। श्रानन्द पारलू की बुद्धि बडी तीव्र है अतएघ स्कूल के सारे शिक्षक श्राप से बहुत ही अधिक मसम रहते हैं। अंगरेजी साहित्य में आपने बहुत ही निपुणता प्राप्त की। उस स्कूल के मुख्याध्यापक ने एक बार यह कहा था कि "हमारी गैर- हाज़िरी में यह लड़का अपने दर्जे के लड़कों को यहुत अच्छी तरह पढ़ा सकता है" मेट्रिक्पूलेशन पास होने के याद आप प्रेसीडेंसी कालिज में गए । वहां मदरास विश्वविद्यालय की पहली परीक्षा पास की। बाद को कुछ दिनों तक यी० ए में पढ़ कर कालिज छोड़ दिया। और घर पर अभ्यास करके बी० ए० पास किया। जित स्कूल में आप ने पहिले पहिले शिक्षा पाई उसी स्कूल में एक शिक्षक की जगह खाली हुई ! श्राप ने उस जगह को पाने के लिए उद्योग किया और भाप यहां नौकर होगए । आप ने खूब दिल लगाकर वहां लड़कों को पढ़ाया । जिस के कारण लड़के और मुख्याध्यापक सम प्राप से खुश रहे। शिक्षक का काम करते रहने पर भी भाप ने बी० यल परीक्षा पास की। वकालत की परीक्षा पास हो जाने के बाद आप मदरास हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। यकालत के काम में प्रापने अच्छा नाम पाया। वकालत का काम करने से भाप को इस बात का ज्ञान प्राप्त हुआ कि हमारे देशबांधयों -
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