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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/५९

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बाबू सुरेन्द्र नाथ बनर्जी । युक्तानां महतां परोपकारे । कल्याणी भवति रुजस्वपि मह यू सुरेन्द्रनाय धनर्गी का जन्म सन् १८४८ में हुप्रा । प्राप के बा पिता यायू दुर्गाचरण यनर्जी कलकत्ते में वैद्यफ का काम फरते । यायू दुर्गाधरण ने हारी परीक्षा पास नहीं की थी परन्तु अपनी बुद्धिमानी द्वारा उन्होंने वैद्यक विद्या में बहुत कुछ कीर्ति प्राप्त की। उस समय कलकत्ते में जो अच्छे अच्छे नामी हाकर थे उन सबों से आप का अधिक मान था और चिकित्सा- शास्त्र में आप को अच्छा अनुभव और ज्ञान था । कार्यक्षमता और कर्तव्य-प्रीति ये दोनों गुण उनमें उत्तम प्रकार से बास करते थे। या) सुरेन्द्रनाथ जी ने इन दोनों गुणों को अपने पिता से ग्रहण किया। यायू दुर्गाधरण के पांच पुत्र थे। उन में से यायू सुरेन्द्रनाथ दूसरे हैं। यायू सुरेन्द्रनाथ की शिक्षा उनके प्रायु के सातवें वर्ष में प्रारम्भ हुई । सय से पहले आप डेविटन फालिज में भरती हुए। उस समय देविटन कालिज में यूरोपियन और यूरोशियन लोगों के ही लड़के अधिक पढ़ते थे। इस कारण सुरेन्द्रनाथ को अंगरेज़ी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने में व्याकरण और कोप की विशेष आवश्यकता नहीं पड़ी। केवल सुनकर ही भाप ने बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त कर लिया। हर समय कालिज में अंगरेजी भाषा बोलने की ज़रूरत पड़ती थी क्योंकि जिन लोगों की मातृभाषा अंगरेज़ी है उन्हीं के लड़के अधिक- तर यहाँ पढ़ते थे । सन् १८६३ में आप ने अपनी उमर के १५ वे साल में इन्ट्रैस परीक्षा पास की। इस परीक्षा में भाप अव्वल नम्बर पास हुए। इन्ट्रैस में प्राप की दूसरी भाषा लेटिन थी। इसके दो वर्ष बाद भापने

  • महात्मा जो परोपकार में लगे हुए हैं बे पीडित दशा में भी

भाजाय तो भी दूसरों के कल्याण में प्रवृत्त रहते हैं।