आयू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी। ४७ "फीचर्च कालिज" में लड़कों को पढ़ाने लगे परन्तु सिटी स्कूल से भाप ने अपना सम्बन्ध बनाये रक्खा। श्राप के बोलने की पद्धति, शिष्य लोगों पर प्रीति और पढ़ाने की धतुरता इन सब कारणों से विद्यार्थी लोग आपके ऊपर अधिक प्रीति और भक्ति प्रगट करने लगे। इस प्रकार अनुकूलता प्राप्त होने पर प्रापने सन् १८८२ में एक नवीन स्कूल निज का खोला । जिस समय आपने स्कूल खोला उस समय उसमें केवल १०० लड़के थे । परन्तु धीरे धीरे यह स्कूल 'रिपन कालिज' के नाम से प्रसिद्ध हुमा और उसमें २००० विद्यार्थी पढ़ने लगे। सन् १८८८ में बङ्गाल के लेफ्टिनेपट- गवर्नर साहब ने रिपन कालिज का निरीक्षण किया उस समय पर आप ने कहा कि "रिपन कालिज सरीखे प्राइवेट कालिज को सरकार से सहायता मिलना जरूरी है। उच्च शिक्षा का अधिकार सर्वसाधारणा के हांथ में देने से कुछ हानि नहीं है। कालिज की तरक्की के लिए उसके जन्म दाता ने जो उद्योग और परिश्रम किया वह प्रशंसनीय और सराहनीय है। रिपन कालिज की व्यवस्था ठीक ठीक रखना एक आदमी के लिए बड़ी कठिन बात है परन्तु उसके वर्तमान कार्यकर्ता अपना निज का काम करके इस कालिज की दोनों शाखाओं का काम बड़ी उत्तमता के साथ करते हैं। इम से उनकी कार्य-क्षमता और उनका दीर्घोद्योग भली भांति जाहिर होता है। बाबू सुरेन्द्रनाथ की बाबत बंगाल के मुख्य अधिकारी की कैसी 'उत्तम राय है । खिदरपुर और हावड़ा इन दो स्थानों पर इस कालिज की शाखाएं स्वयं सुरेन्द्रनाथ बाबू ने स्थापित की। इन दोनों शाखाओं पर वे स्वयं देख रेख रखते हैं । इन सब स्कूलों में कुल ३५०० के फ़रीब विद्यार्थी पढ़ते हैं। यदि सरकारी नौकरी से श्राप को छुटकारा न मिल जाता तो आप के द्वारा इतने अधिक बालकों को किस प्रकार लाम पहुंचता? " सन् १८६१ में बङ्गाली नामक एक अंगरेजी साप्ताहिक पत्र कलकत्ते से निकलना प्रारम्भ हुआ । उस पत्र में बंगाल प्रान्त के अंगरेज़ी भाषा विशारद बहुत से सज्जन लोग लिखते थे। सन् १८७८ में बायू सुरेन्द्रनाथ की दृष्टि इस पत्र पर पड़ी । उस समय भाप की यह इच्छा उत्पन्न हुई
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