पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/६२

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कांग्रेस-चरितावली। कारी मिस्टर मिन्सेप साहब थे। कमिश्नरों की निगाह में बाबू सुरेन्द्र- माथ अपराधी साबित हुए। कमीशन की रिपोर्ट यहाल सरकार की। मार्फत भारत सरकार के पास पहुंची । भारत सरकार ने बाबू सुरेन्द्रनाथ को मार्च सन् १८१४ में सरकारी नौकरी से अलग कर दिया और ५० रुपया मासिक पेन्शन देना स्वीकार किया। भारत के एक होनहार युवक ने अपनी अलौकिक बुद्धिमत्ता और परिश्रम द्वारा जो फल प्राप्त किया था वह एकाएक नष्ट हो गया। इस शोचनीय समाचार को जान कर बङ्गाल प्रान्त वासियों को अधिक दुःख हुआ । संसार में बाबू सुरेन्द्रनाथ के नाटक का यह पहला दृष्य ख़तम हो कर दूसरा प्रारम्भ हुआ नौकरी छूट जाने को बाद आप फिर विलायत गए। वहां पर आपने भारत सर- कार के विरुद्ध अपील की । परन्तु नतीजा कुछ न निकला। अन्त में आप ने वैरिस्टरी पास करने का विचार किया। वह भी पूरा न हुआ। भारत सरकार द्वारा जो अपराध आप पर साबित हुआ इस कारण आप बैरिस्टरी की परीक्षा में शरीक न हो सके । अन्त में निराश हो कर प्राप भारतवर्ष में वापस पाए। आपने जो कुछ उद्योग किया उस सब में आपको निराश होना पड़ा । परन्तु श्राप तिल मात्र भी नहीं घबड़ाए । महात्मा लोग जो उपफार में लगे हैं वे संकट पड़ने पर कभी नहीं घबड़ाते । जो देश सेवा करने के लिए व्रती हुआ है वह राजा की सहायता देश-सेवा करने के लिए न पाये तो भी वह किसी न किसी प्रकार देश सेवा ज़रूर करता है। देश सेवा के लिए एक मार्ग बन्द हो जाने पर बाबू सुरेन्द्रनाथ ने दूसरा मार्ग सोचा। देशबांधयों को शिक्षा देने और उन्हें शिक्षित करने से अधिक और क्या देश-सेवा हो सकती है ! अतएव ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के कहने पर आपने सन् १८७६ में मेट्रापालिटन इन्स्टिट्यूशन' में लड़कों को पढ़ाना स्वीकार किया। वहां श्राप यालकों को अंगरेज़ी पढ़ाते थे। आप को मासिक वहां मिलने लगा। इसके कुछ थोड़े दिन याद ही “सिटी स्कूल" खुला । विद्यासागर की अनुमति से प्राप वहां भी पड़ाने लगे। सन् १८८१ में विद्यासागर का स्कूल छोड़ कर प्राप २००) -