सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'मिस्टर सी० शंफरन् नाय्यर । ६५ प्रबंध-सम्बन्धी कार्य करने में यहुत ही योग्य हैं। प्रबंध-सम्बन्धी कार्य करने में उनकी योग्यता का ठीक ठीक परिचय मिलता है । शंफरन् म. होदय कांग्रेस के बड़े भक्त हैं। हर साल माप कांग्रेस की उन्नति के लिए बहुत सा धन खर्च करके कांग्रेस की सहायता करते हैं। मिस्टर शंकरन नाय्यर ने कुछ दिनों तक मदरास ला जनरल के सहकारी सम्पादक का भी काम किया है और आप मदरास रिवियू नामक प्रति उत्तम त्रैमासिक पत्र के सम्पादक का भी काम कर चुके हैं। इस त्रैमासिक पत्र को मापने यही योग्यता के साथ सम्पादन किया । परन्तु यहे खेद का विषय है कि वकालत का काम अधिक बढ़ जाने से, आप पत्र की ओर अधिक ध्यान नहीं दे सकते। शंकरन् महोदय की परोपकारिता ने उन्हें सर्व-प्रिय बना दिया है । सन् १८८४ में, शंफरन् ने विलायत की यात्रा की । परन्तु अधिक समय तक आप वहां नहीं रह सके। आप के कार्य करने की प्रणाली इतनी सरल और शुद्ध है कि आप चाहें कांग्रेस के मंडप में हो चाहे कौसल में, सभा में हों अथवा यूनियर्सिटी हाल में, आप अपना काम समान रूप से, स्थिरता, गम्भीरता और श्रेष्ठता पूर्वक करते चले जाते हैं। आप को सारा भारतवर्ष भादर की दृष्टि से देखता है। माप की योग्यता को जान कर ही सन् १८९७ में, लोगों ने भारत की सर्वमान्य राष्ट्रीय सभा का सभापति चुना था । राष्ट्रीय सभा में राष्ट्र की ओर से मान पाना कुछ सहज वात नहीं है । प्रजा अपने शुभचिन्तकों को ही इस आसन पर बैठाने की, अपने प्रतिनिधियों को सलाह देती है। 'बिना प्रजां का हित किए, किसी को भी, इस उच्च आसन पर भारुढ़ होने की कामना न करना चाहिए । शंकरन् महोदय ने प्रमा की प्राज्ञा 'को शिरोधार्य करके कांग्रेस का सभापति होना स्वीकार किया। अतएव आप सन् १८८७ में, जय कांग्रेस की तेरहवीं बैठक मरायती (बरार) में हुई तब उसके आप 'सभापति हुए । सभापति के नाते से जो आप ने 'उस साल व्याख्यान दिया था यह मनन करने योग्य है।