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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/८२

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करने की ओर आकर्षित हुआ । कालिज की शिक्षा समाप्त करके श्राप वाबू रमेशचन्द्र दत्त। सर्वन गुणवानेव चकास्ति प्रथितो नरः। मणिर्मुनिं गले वाहो पादपीठेपि शोभते ॥ धू रमेशचन्द्र दत्त का जन्म सन् १८४८ में, कलकत्ते में हुआ। वा आप के पिता, लाठ विलियम बैंटिंक के जमाने में, एक अच्छी जगह पर नौकर थे और इनके दाद कलकत्ता हाईकोर्ट के जज थे। इससे ज्ञात होता है कि रमेश धावू का जन्म एक कुलीन घराने में हुआ है। यह जाति के कायस्थ हैं। प्राप के घराने के लोग हमेशा से विद्वान् होते आए हैं और उनको अच्छी श्रमी सरकारी नौकरी मिलती रही हैं। आप को प्रारम्भिक शिक्षा कलको के एक हाई स्कूल में हुई। वहां इन्ट्रेस पारा करके आप प्रेसीडेंसी कालिज में भरती हुए। कालिज के सारे शिक्षक भाप की बुद्धि और स्मरण शक्ति की सदैव तारीफ़ करते थे। कुलीन घराने में बुद्धिमत्ता और उच्च शिक्षा की सहायता पाकर प्रापका मन उच्च कार्य को इच्छा विलायत जाने को हुई। अतएव आपके पिता ने भी आप को विलायत जाने को प्राता दी । सन् १८६८ ईस्वी में आप सिथिलसर्विस परीक्षा पास करने के लिए विलायत गए । सन् १८६८ में आप ने वहां सिविलसर्विस की परीक्षा पास की और दो वर्ष और वहां रह कर, सन् १८७१ में वे भारत में लौट आए। यहां प्राने पर प्राप ने सरकारी नौकरी स्वीकार कर ली। जिसे आप बराबर सन् ८० तक

  • गुणवान सब जगह प्रसिद्ध हो, शोभा पाते हैं; मणि को चाहे गले

में पहनो, चाहे भुजा में, चाहो बैठने के पीढ़े पर जड़ दो; सब ठौर अप्रतिम शोभा देता है।