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पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/८७

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बाबू रमेशचन्द्र दत्त। ७१ दत्त महाशय सरकारी बातों का खंडन समय समय पर किया करते हैं। परन्तु भाषण करते समय शाप सभ्यता की सीमा के पार कभी नहीं जाते । सरकार द्वारा प्रजा के प्रहित का जो कार्य माप देखते हैं उससी पाप कड़ी आलोचना जरूर करते हैं। परन्तु कट्टी भालोचना के लिए सरकार ने प्रजा को जो अधिकार दे रक्खे हैं उसकी यायत प्राप सरकार की बहुत प्रशंसा करते हैं । सन् १८८८ ईसवी में जय राष्ट्रीय सभा की बैठक लखनऊ में हुई थी उस समय जो आपने सभापति के तौर पर व्याख्यान दिया था वह बहुत ही सारगर्भित था । मापने कहा था कि, सरकारी काम की मालोचना करते समय सौम्यता और सभ्यता का व्यवहार सब को करना चाहिए। आलोचना करते समय अतिश; योक्ति का विलकुल संधार भी न हो। आप स्वयं भी इसी प्रकार बड़ी सावधानी के साथ सरकारी कानून कायदे और व्यवहार की पालोधना करते हैं। इसी कारणा प्राप की आलोचना का लोगों पर यहुत कुछ असर पड़ता है । लाट साहब के नाम जिस समय आपने खुली चिट्ठियां लिख कर मकाशित की घी उसी समय लाट साहब ने प्रापको बुला कर मुलाकात की थी। मुलाकात के समय माबू साहय और लाट साहब में क्या बात चीत हुई यद्यपि वे बातें अब तक प्रगट नहीं हुई हैं. परन्तु स से यह बात साफ़ प्रगट होती है कि आपके लेखों का असर लाट साहब पर ज़रूर हुमा । लार्ड कर्जन सरीखे नीतिज पण्डित के अपर प्रापके लेखों का प्रभाव पड़ा और इस कारण दत्त महाशय के लेख पर विचार करने की उनको ज़रूरत पड़ी । इसी से रमेश बाबू • की योग्यता और विद्वता की बहुत कुछ कल्पना की जा सकती है। राज कान में भारतवासियों की बात नहीं मानी जाती यह ठीक है; • परन्तु रमेशचन्द्र का कहना है कि हमें अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए: समय आने पर सब बातें स्वयं ठीक हो जाती हैं । सीधा रास्ता ग्रहण करने से मंज़िल मकसूद तक अवश्य मनुष्य पहुंच जाता है। कुटिल नीति का कभी अवलम्भन न करना चाहिए। यह आपका विधार बहुत ही ठीक है। बहुत से काम समयानुसार होते हैं। हर